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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १८६ तद्धितनामनिरूपणम् नेह पण्यं विवक्षितम् । विग्रहस्तु तृणभारः पण्यमस्येति बोध्यः। एवं काष्ठभारिकादावपि विग्रहो बोध्यः । 'नदस्य पण्यम्' (पा. ११४५१) इति सूत्रेण ठक् प्रत्यये सिद्धिः । तथा-शिल्पार्थ दिलमत्ययेन यन्नाम निष्पद्यते तत् शिल्पनाम । उदा. हरणमाह-'तुन्निए' इत्याद। तुन्नं शिल्पमस्येति तौग्निकः। वयन=सूत्राणां कप्पासिए, भंडालिए, कोलालिए) तार्ण भारिक, काष्ठभारिक, पात्रभारिक, दौष्यिक, सौत्रिक, कार्पासिक, भाण्डवैचारिक, कौलालिक ये सब (कम्मणामे ) कर्म नाम हैं । कर्म शब्द यहां पण्य "बेचने योग्य पदार्थ) इस अर्थ में आया है । "तृगभारः पण्यं अस्थ" ताणभारिकः" इसका ऐसा विग्रह है । इसी प्रकार का विग्रह "काष्ठभारः पण्यमस्य काष्ठभारिकः" पात्रभारः पण्यमस्य पात्रभारिकः" इत्यादि नामरूप शब्दों को भी जानना चाहिये। " तदस्य पण्यं" इस सूत्र से इन सब में ठक् प्रत्यय हुआ है। ठक् को इकू होकर तब ये तार्ण भारिक आदि नामरूप शब्द निष्पन्न हुए हैं । (से किं तं सिप्पनामे ?) हे भदन्त ! शिल्प नाम क्या है ? अर्थात् शिल्पार्थ में तद्धिन प्रत्यय के करने से जो नाम निष्पन्न होता है, वह कैसा होता है ? उत्तर-(सिप्पनामे) शिल्पार्थ में तद्वित प्रत्ययठक के करने पर जो नाम निष्पन्न होता है वह शिल्प नाम है और वह इस प्रकार से है-(तुगिए, तंतुवाइए, पट्टकारिए, उच्चहिए, वरुंडिए, मुंजकारिए, भंडवेआलिए, कोलालिए) तामा४ि, पात्रमाRe, allous, सौत्रित, अपासिड, मवैयारिख, सालिs भास (कम्माणामे) भनामा छ. भ.vg मही ५५५ मेटले है क्या ४ पहा " तृणभारः पण्य अस्य, तार्णभारिकः " मा श७४न। विडमा प्रभारी थशे. मा प्रमाणे "काष्टभारः पण्यम् अस्य काण्टभारिकः पात्रभारः पण्यम् अस्य पात्रभारिक:'' पोरे नाम ३५ शहोमi ५५ युन. 'तदस्य पण्य " म। सूत्रथा साधा शहोमi 'ठक्' प्रत्यय यो छ. ' ठक्' २ 'इकु' प्रत्यय ये! छे तथा मा 'तार्णभारिक' पोरे शह नियन्न च्या छ. (से कि त सिप्पनामे?) 3 ભદંત ! શિલ્પ નામ એટલે શું? અર્થાત્ શિલ્પાર્થમાં તદ્ધિત પ્રત્યય લગાડ વાથી જે નામ નિષ્પન્ન થાય છે, તે કેવું થાય છે? उत्तर-(सिप्पनामे) शिल्पा भi तद्धित प्रत्यय 'ठ' ४२वाथी २ नाम निपन्न थाय छे, ते शि५म छ भने ते मी प्रमाणे छे. (तुण्णिए, तंतुवा. इए पट्टकारिए उबट्टिए, वरुंडिए, मुंजकारिए, कटुकारिए, छत्तकारिए, वज्झकारिए, For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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