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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २४८ अनुगमनामानुयोगद्वारनिरूपणम् ८०५ छाया-क्षेत्रदिकालगति भविक संज्युच्छवास दृष्टयाहारान् ।
पर्याप्तसुप्त जन्मस्थिति वेदसंज्ञा कपायाषि ॥१॥ ज्ञानं योगोपयोगी, शरीरसंस्थानसंहननमानानि । लेश्या परिणामं वेदनां च समुद्घात कर्म च ॥२॥ निवेष्टनमुद्वर्त्तम् आस्रवकरणं तथा अलङ्कारम् ।
शयनासनस्थानस्थान् चङक्रमतश्च किं व 'सामायिकम् ॥३॥ इति । अयमर्थ:
क्षेत्रं दिशः कालं गतिं भव्यं संज्ञिनम् उच्छ्वासं दृष्टिम् आहारकं चाश्रित्य क किं सामायिकं भवतीति वक्तव्यम् । तथा-पर्याप्तमुप्तजन्मस्थिति वेदसंज्ञाकषायाऽऽयूंषि चाश्रित्य क कि सामायिक भवतीति वक्तव्यम् । तथा-ज्ञानं योगोपयोगी शरीरसंस्थानसंहननमानानि लेश्यापरिणामं वेदनां समुद्घातकर्म चाश्रित्य कि क्व ___तथा-'सामायिक कहां होता है। यह भी कहना चाहिये-इसी अर्थ को इन तीन गाथाओं द्वारा स्पष्ट किया गया है-ये गाथाएँ' खेत्तदि. सिकाल गई' इत्यादि हैं। इनका अर्थ इस प्रकार से हैं-(१) क्षेत्र, (२) दिशा, (३) काल, (४) गति, (५) भव्य, (६) संज्ञी, (७) उच्छ्वास, (८) दृष्टि, और (९) आहारक, को आश्रित करके कहां कौन सा सामायिक होता है ? यह कहना चाहिये। तथा-(१०) पर्याप्त, (११) सुस, (१२) जन्म, (१३) स्थिति, (१४) वेद, (१५) संज्ञा, (१६) कषाय, और (१७) आयु इनका आश्रय करके कहां कौन सामायिक होता है ? यह कहना चाहिये । तथा-(१८) ज्ञान, (१९) योग, (२०) उपयोग, (२१) शरीर, (२२) संस्थान, (२३) संहनन, (२४) मान, (२५) लेश्या, (२६) परिणाम, (२७) वेदना, (२९) समुद्घात कर्म
તેમજ સામાયિક કયાં હોય છે એ વિષે પણ કહેવું જોઈએ. એ જ અર્થને આ ત્રણ ગાથાઓ વડે સ્પષ્ટ કરવામાં આવેલ છે. આ ગાથાઓઃ'खेत्तदिति काल गई' या छे. माने! म मा प्रमाणे छे. (१)क्षेत्र (२) हिशा, (3) १ (४) गति, (५) अव्य, (६) सी. (७) २पास (C અને (૯) આહારકને આશ્રિત કરીને કયાં કયું સામાયિક હોય છે, આ हे नये. तेभर (१०) पात (११) सुत (१२) अन्य (13) स्थिति, (१४) ३ (१५) संज्ञा (१९) षाय भने (१७) मायु मा सना माश्रय કરીને કયાં કયું સામાયિક હોય છે? આ કહેવું જોઈએ. તથા (૧૮) જ્ઞાન, (१८) ये, (२०) ३५॥१, (२१) शरी२, (२२) संस्थान, (२3) सहनन (२४) भान, (२५) वेश्या (२६) पाराम, (२७) वना, (२८) समुद्धात
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