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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २४६ नामनिष्पन्न निरूपणम् यिक और स्थापना सामायिक का स्वरूप नाम आवश्यक एवं स्थापना आवश्यक के जसे जानना चाहिये! (दयनामाइए वि तहेव जाव से तं भवियसरीरदब्वमामाइए) तथा द्रव्य सामायिक का स्वरूप भी द्रव्य आवश्यक के जैसा ही जानना चाहिये । और यह द्रव्य सामायिक का स्वरूप द्रव्य आवश्यक के जैसा वहां तक ही जानना चाहिये कि जहां भषशरीर द्रव्यमामायिक का कथन समाप्त होता है। (से किं तं जोगयसरीरभवियसरीरबहरित्ते दव्य सामाइए ?) हे भदंत! ज्ञाय शरीर भवपशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य सामा. यिक क्या है ? उत्तर--(जाणयसरीरभवियसरीरबहरिते दम्वसामाइए पत्ता यपोस्थय लिहिए) ज्ञायकशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्यसामायिक पत्र पुस्तक में लिखित । 'करेमि भंते सामाइयं' इत्यादि पाठ है। (से तं जाणयसरीरभविएसरीरवारित्ते दवसामाइए ) इस प्रकार यही ज्ञायकशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्य मामायिक का स्वरूप जानना चाहिये । (से तणो आगमओ दवलामाइए) इस प्रकार नो आगम की अपेक्षा यह द्रव्य सामायिक का स्वरूप कथन है। (से कि त भावसामाइए?) भदन्त ! भावसामायिक क्या है ? (भाव सामाभणियाओ) मामा नामसामयि: भने स्थापना सामायिनु २२३५ नाम मा५१५४ अने स्थापना भा१श्य नी म one से . (दव्व सामाइए वि तहेव जाव से त भवियसरीरदवसामाइए) तभा द्रव्य સામાયિકનું સ્વરૂપ પણ દ્રવ્ય આવશ્યકની જેમજ જાણું લેવું જોઈએ, અને આ દ્રવ્ય સામાયિકનું સ્વરૂપ દ્રવ્ય આવશ્યકની જેમ ત્યાં સુધી જ જાણવું. જોઈએ કે જ્યાં સુધી ભવ્ય શરીર દ્રવ્ય સામાયિકનું કથન સમાપ્ત થાય છે. (से कि' त' जाणयसरिरभवियसरीरवइरित्ते दवसामाइए १) महत! ज्ञाय શરીર ભવ્ય શરીર વ્યતિરિક્ત દ્રવ્ય સામાયિક શું છે? उत्तर--(जाणयसरीरभ वेयसरीरवइरित्ते दरसामाइए पत्तयपोत्थय लिहिए) જ્ઞાયક શરીર ભવ્ય શરીર વ્યતિરિક્ત દ્રવ્ય સામાયિક પત્ર પુસ્તકમાં वि1ि 'करेमि भंते सामाइयं' त्या ५४ छ (से त जाण यसरीरभवियसरीरवहरिते दवसामाइए) मा प्रा शायशश२ सयशरीर व्यतिक्षित द्र०य सामायिनु २५३५ ०not a ने मे. (से तणो आगमओ दव्वसामाइए) 241 प्रमाणे ने मारामानी अपेक्षा से द्रव्य सामायिन २१३५नु अ० ९६ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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