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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २४२ निक्षेपद्वारनिरूपणम् .७३७ अध्ययन और स्थापना अध्ययन नाम आवश्यक और स्थापना आबइयक के जैसा ही जानना चाहिये । (से किं तं दध्वञ्झयणे ? ) भदन्त ! द्रव्य अध्ययन का क्या स्वरूप है ? उत्तर- (दव्वज्झणे दुविहे पण्णत्ते) द्रव्य अध्ययन दो प्रकार का कहा गया है । ( तं जहा ) जैसे (आगमओ य णा आगमओ य ) एक आगम से और दूसरा नो आगम से (से किं तं आगमओ दव्वज्झयणे ?) हे भदन्त ! आगम से जो द्रव्य अध्ययन कहा गया है उसका क्या स्वरूप है ? उत्तर-- (आगमओ दव्वज्झयणे) आगम से जो द्रव्य अध्ययन कहा गया है, वह इस प्रकार से है - ( जस्स णं अज्झयण त्ति पयं सिविखयं ठियं, जियं मियं परिजियं, जाव एवं जावइया अणुवउत्ता आगमओ तावइआई द०ज्झयणाइं) जिसने अध्ययन इस पद को सीखा हैं, अपनी आत्मा में स्थित जित आदिरूप से किया है । (इन स्थित आदि पदों का स्पष्ट अर्थ व्यावश्यक प्रकरण में लिखा जा चुका है ) परन्तु उस जीव का उपयोग वहां नहीं लगा है। इस प्रकार जितने भी अनुपयुक्त जीव हैं, वे सब आगम से द्रव्य अध्ययन हैं । ( एवमेव वयहारस्स वि, संगहस्स णं एगो वा अणेगेो वा ) यहाँ से लेकर (से तं कित આવશ્યક અને સ્થાપના આવશ્યકની જેમ જ लगुवा. दव्यणे १ ) से लहंत ! द्रव्य अध्ययननु स्व३५ वु छे ? उत्तर-- (दव्वज्झणे दुविहे पण्णत्ते) द्रव्य अध्ययन से अमर डेवाभां भावे छे. (तं जहा प्रेम है ( आगमओ य णो आगमओ य) खेड यागभथी गाने द्वितीय ने भागभथी (से किं तं आगमओ) डे लहांत ! आगमथी દ્રવ્ય અધ્યયન કહેવામાં આવેલ છે, તેનુ સ્વરૂપ કેવુ છે? उत्तर- (आगमओ दव्वज्झयणे ) भागमथी ने द्रव्य अध्ययन हेवाभां मावेस छे, ते या प्रभा छे - (जस्स ण अज्झयणत्ति पयं सिक्खियं ठियं जियं मियं, परिजिय जाव एवं जावइया, अणुवउत्ता, आगमओ तावइआइ दव्व ज्यणाई) ने अध्ययन या पहने शोच्यो है, पोताना आत्मामा स्थित જિત વગેરે રૂપમાં કરેલ છે, (આ સ્થિત વગેરે પદોના સ્પષ્ટ અથ દ્રવ્યાવશ્યક પ્રકરણમાં લખવામાં આવેલ છે) પરંતુ, તે જીવના ઉપચાગ ત્યાં બધ એસતા નથી. આ પ્રમાણે જેટલા અનુપયુકત જીવે છે, તે સર્વે આંગभथी द्रव्य अध्ययन छे, (एवमेव ववहारख वि, संगहस्य णं एगो वा अणेगोवा) अ० ९३ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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