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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६७९ अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २३६ अष्टविधानंतकनिरूपणम् राशीनाम् अन्योन्याऽभ्यासः प्रतिपूर्णों जघन्य युक्तानन्तकं भवति, अथवा उत्कर्ष के परीतानन्त के रूपं प्रक्षिप्तं जघन्य युक्तानन्तक भवति, अभवसिद्धिका गुणा करने पर जघन्य युक्तानन्तक का प्रमाण आता है। और जब इसमें से एक सर्षप कम कर दिया जाता है तो, वही राशि उत्कृष्ट परीतानन्तक का प्रमाण हो जाता है । इसी बात को सूत्रकार यों समझाते हैं कि (अहवा-हाणय जुत्तार्णतयं हवूणं उक्कोसयं परित्ताणतयं होइ) जघन्य युक्तानन्तक में जितने सर्षपों का प्रमाण कहा गया हैंउसमें एक सर्षप कम कर देने पर उत्कृष्ट परीतानन्तक का प्रमाण आ जाता है । (जहाण यं जुत्ताणंत्तयं के वइयं होइ ?) जघन्य युक्तानन्तक का प्रमाण कितना होता है ? उत्तर-(जहण्णपरित्ताणंतमेताणं रासी अण्णमण्गम्भासा पडि. पुण्गो जहणणयं जुताणतयं होइ) जघन्य परीतानन्तक में जितनासषपों का प्रमाण होता है, उसका अन्योन्य अभ्यास के रूपमें गुणित करो और फिर उस गुणित राशि में से एक सर्षप कम नहीं करो-यही जघन्य युक्तानन्तक का प्रमाण है। (अहवा उकोसर परित्ताणतए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं जुत्ताणतयं होइ) अथवा उत्कृष्ट परीतानन्तक का जो प्रमाण है उसमें एक सर्षप प्रक्षिप्त कर दो-सो यह प्रमाण जघन्य युक्ताચુકતાનંતકનું પ્રમાણ આવે છે. અને જ્યારે આમાંથી એક સર્ષ પ ઓછો કરવામાં આવે છે ત્યારે તે જ રશિ ઉત્કૃષ્ટ પરીતાનંતકનું પ્રમાણ થાય છે. मेरी वातने सूत्र१२ ॥ प्रमाणे समवे छे 8-(अहवा जहण्णय जुत्ताणतय रूवूण उक्कोसय परित्ताणतय होइ) धन्य युस्तान तभी रेसा સર્ષ પિનું પ્રમાણ કહેવામાં આવ્યું છે, તેમાં એક સર્ષ ૫ ઓછો કરવાથી Grube परीतान-तनु प्रभार यादी तय छे. (जहण्णय जुत्ताणतय केवइय' होइ १) धन्य सुस्तान तनु' प्रभाय २९ जाय छ ? उत्तर--जहण्णपरित्ताणंतमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णब्भासो पडिपुण्णो जहण्णय-जुत्ताणतय होइ) धन्य परीतानन्तम २८ सप यानु પ્રમાણ હોય છે, તેને અને અન્ય અભ્યાસના રૂપમાં ગુણાકાર કરે અને પછી તે ગુણિત રાશિમાંથી એક સર્ષપ એ છે કે नहि, तो मे४ घन्य युतानतानु प्रभाव छ. (अहवा उक्कोसए परित्ताणतए रूवं पक्खित्तं जहण्णय जुत्ताणतयं होइ) अथवा उत्कृष्ट परीता નંતકનું જે પ્રમાણ છે, તેમાં એક સર્ષ પ્રક્ષિત કરી દે તે આ પ્રમાણ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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