________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनुयोगवन्द्रिका टीका सूत्र २३५ नवविधमसंख्येयकनिरूपणम् ६७५
लोगागासपएसा१, धम्मा२ धम्मे३गजीवदेसा४ य । दव्यढ़िया निओआ५, पत्तेया६ चेव बोद्धव्या ॥१॥ ठिइवंधज्झवसागा७ अंणुभाग८ जोगछे पपलिभाग९। दोण्ह य समाण समया१०, असंखपक्खेवया दस उ ॥२॥ छाया-लोकाकाशप्रदेशा धर्माधर्मकजीवदेशाश्च ।
द्रव्याथिका नियोगाः प्रत्येकाश्चैव बोद्धव्याः॥१॥ स्थितिबन्धाध्यवसाना अनुभागा योगच्छेदप्रतिभागाः।
द्वयोश्च समयोः समया असंख्येयाः प्रक्षेपका दश तु ॥२॥ इति । एते दश प्रक्षेपाः पूर्वोक्ते वास्त्र यवगिते राशौ प्रक्षिप्यन्ते । इत्थं यो राशि: पिण्डितो भवति, तस्य पुनः पूविद् वारत्रयं वर्गः क्रियते । ततश्च एकस्मिन् रूपे ऽपसारिते उत्कर्षकम् असंख्येयासंख्येयक भवति । इत्थं नवविधमप्यसंख्येयकमुक्तमिति ।।मू० २३५॥ इस प्रकार ये प्रत्येक दश प्रक्षेप असंख्यात स्वरूप हैं । उक्त च करके जो ये दो गाथाए' लोगागासपएसा' इत्यादि 'ठिइबंधझवसाणा' इत्यादि यहां उद्धृत की गई हैं, वे इन्हीं दश प्रक्षेपकों के नाम को कहती हैं। ये दश प्रक्षेपवार प्रयवर्गित पूर्वोक्त राशि में प्रक्षिप्त किये जाते हैं । इस प्रकार इनके उस राशि में प्रक्षिप्त करने पर जो राशि आती है, उसका पुनः पूर्व के जैसा तीन बार वर्ग करना चाहिये । और फिर आगत राशि में से एक कम कर देना चाहिये । इस प्रकार जो राशि का प्रमाण बचे वह उत्कृष्ट असंख्धातासंख्यात है। इस प्रकार से यह नव प्रकार के असंख्यात का वर्णन जानना चाहिये ॥ सू० २३५ ॥
असन्यात २१३५ छ. तय ४२ रे सा आया। 'लोगागास पएसा' या 'ठिइबंधझवसाणा' वगेरे मही ६५त ४२वामां आवी छे. ते એજ દશ પ્રક્ષેપકેના નામને કહે છે. આ દશ પ્રક્ષેપ વારત્રય વર્ગિત પૂર્વોક્ત રાશિમાં પ્રક્ષિત કરવાથી જે રાશિ આવે છે, તેનો ફરી પૂર્વની જેમ જ ત્રણ વાર વર્ગ કરે જોઈએ. અને પછી આગત રાશિમાંથી એક છે કરી નાખવું જોઈએ, આ પ્રમાણે જે રાશિનું પ્રમાણ બાકી રહે તે ઉત્કૃષ્ટ અસંખ્યાતાસંખ્યાત છે. આ પ્રમાણે આ નવ પ્રકારના અસંખ્યાતનું वन मे. ॥ सूत्र-२३५ ।।
For Private And Personal Use Only