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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगद्वारसूत्रे स्थाप्यते तद् गगनाम बोध्यम् । यथा-मल्लो मल्लदत्तो मल्लधर्म इत्यादि । यस्या अपत्यं जातमात्रमेव म्रियते सा स्वापत्यजिवितहेतोर्यकिमपि नाम करोति तज्जीवितनाम, यथा-अवकरक उत्कुरुटक इत्यादि । तथा-यन्नाम गुणनिरपेक्षं स्वाभिमायवशेन लोकरूढया व्यवस्थाप्यते तत् आभिमायिकनाम । यथा-अम्बको निम्बक होता है, वह यहां गण शब्द को अर्थ है । उस नाम से जो किसी का नाम स्थापित किया जाता है वह गण नाम है। जैसे (मल्ले, मल्लदिन्ने, मल्लधम्मे, मल्लसम्मे, मल्लदेवे मल्लदासे, मल्लसेणे, मल्लरक्खिए) मल्ल, मल्लदत्त, मल्लधर्म, मल्लशर्मा, मल्लदेव, मल्लदास, मल्लसेन, मल्लरक्षित । (से तं गणनामे) इस प्रकार यह गण नाम है। (से किं तं जीवियनामे ) हे भदन्त ! जीवित नाम क्या है ? (जीवियनामे) जिस स्त्री का अपत्य-(संतान) उत्पन्न होते ही मर जोता है, वह उसके जीवित निमित्त उसका चाहे जो नाम रख लेती है, वह 'जीवित नाम' है । वह इस प्रकार से है-(अवकरए, उक्कुरडए, उजिझभए, कज्जा. वए, सुप्पए) अवकरक, उत्कुरूटक, उज्झितक, कचवरक, शूर्पक। (से तं जीवियनामे ) इस प्रकार से यह जीवित नाम । (से किं तं आभिप्पाइयनामे) हे भदन्त ! आभिप्रायिक नाम क्या है ? ___ उत्तर-(आभिप्पाइयनामे) गुण की अपेक्षा किये विना जो नाम अपने अभिप्राय के वश से लोकरूढी को लेकर रख लिया जाता है वह गणनामे?) मत! ते गणनाम शुछ १ (गणनामे) आयुध विमान २ સંધ હોય છે, તે અહીં ગણ શબ્દથી સંબધિત સમજવો જોઈએ આ નામથી ગમે તેનું નામ રાખવામાં આવે છે, તે ગણનામ છે. જેમ કે (मल्ले, मल्लदिन्ने, मल्लधम्मे, मल्लसम्मे, मल्लदेवे, मलदासे, मल्लसेणे मल्लरक्खिए) मस, भत्त, मसयम, मशर्मा, महेव, भतहास, भासेन, HEA२ क्षत. (से कि त जीवियनामे) ! पित नाम शु ७. (जीविय नामे) २ श्रीनु सतन 6पन्न थdir भर पाम छे, ते તેના જીવિત નિમિત્તે તેનું ગમે તે નામ રાખી લે છે. તે કવિતનામ છે. ॥ प्रभारी छ. (अवकरए, उक्कुरुडए, उझि भए, कज्जावए, सुपए) १४२४, २८४, Glrsds, ध्य१२४, शू५४ (से कि त जीवियनामे) या प्रमाणे ॥ वितनाम छ. (से कि त आभिप्पाइय नामे) 3 मत ! આભિપ્રાયિક નામ શું છે? उत्तर-(आभिप्पाइय नामे) अपना आधारे नहि पोशति भुराम જે નામે પિતાના અભિપ્રાય મુજબ રાખવામાં આવે છે, તે આભિપ્રાયિક For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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