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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २२९ प्रदेशदृष्टान्तेन नयप्रमाणम् भावात् नो जीवत्वं बोध्यमिति भावः । एवं--खंधे परसे से पएसे नो खंधे'स्कन्धः प्रदेवः स प्रदेशो नो स्कन्धः । अन्तस्कन्धात्मकसमस्तस्कन्धैकदेशैंक स्कन्धवर्तिनः प्रदेशस्य समस्तस्कन्धयत्तित्वाभावाद् नो स्कन्धत्वमिति भावः । एवं वदन्तं शब्दनयं समभिरुढः नानार्थसममिरोहणात् समभिरुढो नयो भणतियत्वं भणसि,-'धम्मे परसे से पए से धम्मे' इत्यादि, तन्न युज्यते वक्तुम् । कुतो न युज्यते वक्तुम् ? इत्याह-यदुच्यते-'धम्मे परसे से पएसे धम्मे' इत्यादि । अत्र धर्मे प्रदेशः, धर्मःपदेशश्चेति द्विविधच्छायायाः संभवात् 'धम्मे' इति सप्तम्यन्तं प्रथमान्तं वा पदमिति संदेहः संजायते । सप्तम्यां तत्पुरुषः, वने हस्तीवनहस्ती. एक प्रदेश को नो जीव कहा है । 'खंधे पएसे से पएसे नो खंधे' इसी प्रकार जो एक स्कन्धात्मक प्रदेश है वह नो स्कंध है। तात्पर्य यह है है-कि अनन्तस्कन्धात्मक जो समस्त स्कंध है-पुद्लास्तिकाय है-उसका एकदेश भूत जो एक स्कन्ध है, उसमें रहने वाले प्रदेश का समस्त स्कंधरूप पुद्लास्तिकाय में रहना नहीं है-अर्थात् उसकी उसमें वृत्ति नहीं है इसलिये एक स्कंधात्मक प्रदेश को नो स्कंध कहा है। (एवं वयंतं सद्दनयं समभिरूढो जं भणइ, जं भणसि धम्मे पएसे से पएसे धम्मे जीवे पएसे से पएसे नो जीवे, खंधे पएसे से पएसे नो खंधे-तं न भवद कम्हा इत्थं खलु दो समासा भति-तं जहा-तप्पुरि से य कम्मधारए य-तं ण णजइ कयरेणं समासे गंभणसि किं तप्पुरिसेणं किं कम्मधारएणं) इस प्रकार कहनेवाले शब्दनय से समभिरूद नय ने कहा-जो तुम कहते हो कि जो प्रदेश धर्मात्मक है वह धर्माવૃત્તિત્વને અભાવ છે. એથી તે એક પ્રદેશને જીવ કહેવામાં આવેલ છે. "खंधे पएसे से परसे नो खंधे" मा प्रभार मे यात्म प्रदेश छ, તે નોસ્કંધ છે. તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે અનંત સ્કંધાત્મક જે સમસ્ત સ્કંધ છે.-પુલાસ્તિકાય છે, તેને એક દેશ ભૂત જે એક કંધ છે, તેમાં રહેનાર પ્રદેશનું સમસ્ત સ્કંધ રૂપ પુકૂલારિતકામાં રહેવું થતું નથી. એટલે કે તેની તેમાં વૃત્તિ નથી. એટલા માટે એક સ્કંધાત્મક પ્રદેશને નેસ્ક पामा भाव छ. (एवं वयंत सदनयं समभिरूढो भणइ, जं भणसि- धम्मे पएसे, से पएसे धम्मे जीवे पएसे से पएसे नो जीवे, खंधे पएसे से पएसे नो खंधे -त न भवइ कम्हा इत्थं खलु दो समामा भवंति-तजहा-तप्पुरिसे य कम्मधारए य त ण णज्जइ कयरेणं समासेणं भणासि कि तप्पुरिसेणं कि कम्मधारएणं) मा प्रभाव ना। शहनयने समलि३८ नये ४ह्यु-ले तमा કહો છો કે જે પ્રદેશ ધર્માત્મક છે, તે ધર્માસ્તિકાયરૂપ છે, યાવત્ જે પ્રદેશ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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