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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - अनुयोगद्वारसूत्र टीका-'से कि त' इत्यादि अथ किं तत् प्रदेशष्टान्तेन नयप्रमाणम् ? इति शिष्यप्रश्नः। उत्तरयति-प्रदेश दृष्टान्तेन-प्रकृष्टो देशः प्रदेशा-निर्षिभागो भागः, स एव दृष्टान्तस्तेन नय. भमाणमेवं विज्ञेयम्-नैगमनयो भणति-पण्णां प्रदेशः, तद्यथा-धर्मप्रदेशः, अधर्मप्रदेशः आकाशप्रदेशः, जीवप्रदेशः, स्कन्धप्रदेशः, देशपदेश इति । अत्र धर्मशब्देन धर्मास्तिकायो विवक्ष्यते तस्य प्रदेशो धर्मप्रदेशः । एवमधर्माकाशजीवशरैरपि अस्तिकायविशिष्टा अवर्मा काश नीया विवक्षिताः । तथा स्कन्धः पुद्गलद्रव्यसमूहसार प्रदेशः-स्कन्धप्रदेशः । देश: उपरिनिर्दिष्टानां धर्मास्तिकायाः __ अब सूत्रकार प्रदेश दृष्टान्त से नय के स्वरूप का प्रतिपादन करते हैं-'से किं तं पएसदिलुतेणं ?' इत्यादि। शब्दार्थ--(से कितपएसदिहतेणं) हे भदन्त ! प्रदेशदृष्टान्त से नय के स्वरूप का प्रतिपादन किस प्रकार से है ? उत्तर--(पएसदिलुतेणं) प्रदेशरूप दृष्टान्त से नपके स्वरूप का प्रतिपादन इस प्रकार होता है-(णेगमो भणइ) नैगमनय कहता है (छण्हं पएसा) कि छह द्रव्यों का प्रदेश है-(तं जहा) जैसे-(धम्मपएसो, अधम्मपएमो आगासपएसो, जीवपरसो, खंधपएसो, देसपएसो,) धर्मास्तिकाय का प्रदेश, अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश, जीवास्तिकाय का प्रदेश, स्कंध प्रदेश और देश प्रदेश । प्रकृष्ट देश का नाम प्रदेश है । अर्थात् जिसका दूसरा विभाग न हो सके ऐसा जो भाग है वह प्रदेश है । पुद्गल द्रव्य के समूह का नाम હવે સૂત્રકાર પ્રદેશ દષ્ટાન્તથી નય-સ્વરૂપનું પ્રતિપાદન કરે છે– 'से कि तं पएसदिदंतेण १' । शपथ-(से कि त पएसदिद्ववेणं) है मत ! प्रदेश तथा નયના સ્વરૂપનું પ્રતિપાદન કેવી રીતે થાય છે ? उत्तर - (पएसदिट्टतेण) प्र. ३५ दृष्टान्तथी नयना २१३५नु प्रति पाहन मारीत थाय छ, (णेगमो भणइ) नैरामनय ४९ छे. (छण्हं पएसा) द्रव्याता प्रदेश (तंजहा) मई (धम्मपएसो, अधम्मपएसो, आगासपरसो, जीव एसो, खंधपएसो, देसपएसो) धातिय प्रदेश, मस्तिय प्रदेश, આકાશાસ્તિકય પ્રદેશ, છતિકાય પ્રદેશ, કંધ પ્રદેશ અને દેશ પ્રદેશ, પ્રકૃષ્ટ દેશનું નામ પ્રદેશ છે. એટલે કે જેનું બીજી કોઈ પણ રીતે વિભાજન થાય નહિ, એ જે ભાગ છે, તે પ્રદેશ છે. પુદગલ દ્રવ્યના સમૂહનું નામ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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