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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगवन्द्रिका टीका सूत्र २२३ उपमानप्रमाणनिरूपणम् न्मादिमात्रतस्तु वैलक्षण्यात् किंचिद्वैधयं बोध्यम् । प्रायो वैधयॉंपनीतं-मायोबाहुल्येन यद्वैधयं वैसादृश्यं तेन उपनीतम्-उपनयो यत्र तत् । तथाहियथा वायसो न तथा पायसः, यथा पायसो न तथा वायस इति । अत्र वायस. पायसयोः सवेतनाचेतनत्वादिभिर्बहुभिधर्मेविसंवादात् पदगतवर्णद्वयेन साम्याच किञ्चित् वैधयोपनीत इस प्रकार से है-जैसा शबला गाय का बछडा होता है-वैसा यहुला गाय का नहीं होता है, और जैसा बहुला गाय का होता है, वैसा शबला गाय का नहीं होता इस प्रकार के कथन में यद्यपि शेषधर्मों की अपेक्षा दोनों में तुल्यता है तो भी शवला बहुला आदिरूप भिन्न २ निमित्तों से जन्म होने के कारण उसमें किंचित् पिलक्षणता प्रकट की गई है। इस प्रकार से यह किंचित् वैधयाँपनीत का तात्पर्य है (से कि तं पायवेहम्मोवणीए) हे भदन्त ! प्राय:वैशेपनीत का क्या तात्पर्य है ? उत्तर--(पायवेहम्मोवणीए जहा वायसो न तहा पायमो, जहा पायतो न तहा वायसो-से तं पायवेहम्मोवणीए) प्रायः वैधयोनीत में अधिकांशरूप में अनेक अवयवगत विसदृशता पर ध्यान न रखा जाता हैजैसे वायस होता है वैसा पायस नहीं होता, जैसा पायस होता है वैसा वायस नहीं होता। यहां पर यद्यपि पदगत दो वर्गों की अपेक्षा इनमें साम्य होने पर भी सचेतनता और अचेतनता आदि अनेक धर्मों की આ પ્રમાણે છે. જેવું શબલા ગાયનું વાછરડું હોય છે, તેવું બહુલા ગાયનું पा७२ सातु नथी. अरे २ मgar गायनु पा७२ डाय छे, ते શબલા ગાયનું હોતું નથી. આ જાતના કથનમાં જે કે શેષ ધર્મોની અપેક્ષા બનેમાં તુલ્યતા છે, છતાં એ શબલા, બહુલા આદિ રૂપ ભિન્નભિન. નિમિત્તોથી જન્ય હવા બદલ તેમાં કંઈક વિલક્ષણ્ય પ્રકટ કરવામાં આવ્યું छे. मा प्रमाणे लियित् वैधभ्यर्यापनातनु तात्पर्य छे. (से कि त पायवेहम्मो वणीए) BRE ! प्रायः वैधभ्यापनातनु शु तात्पय ? उत्तर-(पायवेहम्मोवणीए जहा वायसो तहा पायसो, जहा पायसो न तहा वायसो-से त पायवेहम्मोवणीए) प्राय:वैधभ्यापन तमा मधिश३५i અનેક અવયવગત વિસદશતા ધ્યાનમાં રાખવામાં આવે છે. જે વાયસ (કાગો) હોય છે તેવું પાયસ હેતું નથી અને જેવું વાસ હોય છે, તે વાયસ હોતો નથી અહીં જે કે પદગત બે વર્ષોની અપેક્ષા આમાં સામ્ય હોવા છતાંએ સચેતનતા અને અચેતનતા વગેરે અનેક ધર્મોની અપેક્ષા વિધમતા For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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