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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२० अनुयोगद्वार बदनुमानमेवं भवति-यथानाम कश्चिन् पुरुषो बहूनां पुरुषाणां मध्ये कमपि पूर्व दृष्टं पुरुषं प्रत्यभिजानीयात् अयं स पुरुष इति । अनुमानप्रयोगश्चेत्यम्-य: पूर्व मयोपलब्धः स एवायं पुरुषः, तथैव प्रत्यभिज्ञायमानत्वात् , उमयाभिमतपुरुषवत् , इति । एतदनुमानं विशेषष्टमुच्यते पुरुषविशेषविषयत्तात् । एवं कार्षापणादि द्वारा कही गई है। (से तं सामनदिट्ट) इस प्रकार यह सामान्य दृष्टदृष्ट साधर्म्यवत् अनुमान का भेद है। (से किं तं विसे सदि) हे भदन्त ! वह विशेषदृष्ट क्या है ? .. उत्तर-(विसेसदि) दृष्टसाधाय॑वत् का भेद जो विशेषदृष्ट है, वह इस प्रकार से है-(से जहाणामए केई पुरिसे कंचि पुरिसं यहूर्ण पुरिसाणं मज्झे पुवादिष्ट पच्चभिजाणेज्जा-अयं से पुरिसे) जैसे कोई पुरुष अनेक पुरुषों के बीच में किसी पूर्वदृष्ट पुरुष को पहिचान लेता है कि-'यह वह पुरुष है । यहां अनुमान प्रयोग इस प्रकार से करना चाहिये । 'यः पूर्व मयोपलब्धः स एवायं पुरुषः तथैव प्रत्यभिज्ञायमानस्वात् उ भयाभिमतपुरुषवत्' जिस पुरुष को मैंने पहिले देखा था, वही यह पुरुष है क्योंकि मैंने उसी रूप से इसे पहिचान लिया है। उभय को अभिमत पुरुष की तरह। यहां 'यः मयोपलब्धः' इतना अंश पक्ष का है 'स एवायं पुरुषः' इतना अंश साध्यकोटि का है। तथैव प्रत्यभिज्ञायमानत्वात्' इतना अंश हेतु है। 'उभयभिमतपुरुषः धत्' यह साधर्म्यदृष्टान्त है । इस अनुमान प्रयोग में (रुप विशेष करिसावणो) मा सूत्रा४ प ४31मावली छ. (सेत सामन्नदिव) भा प्रभाव मा सामान्य हट साधत अनुमानना ले. छ. (से कि त विसेमदि) 3 महत! विशेष ट शु छे. उत्तर--(विसेसदिढ') दृष्ट साभ्यवत् । मेरो विशेष छ, ते मा प्रभाव छे. (से जहाणामए केई पुरिसे कंचि पुरिसं बहूणं पुरिसणं मज्झे पुष्वदि पच्चभिजाणेज्जा-अयं से पुरिसे) ७ ५३५ मन यानी क्यमा २६ કે પૂર્વ દૃષ્ટા પુરૂષને ઓળખી લે છે કે, “આ તે જ માણસ છે અહીં અનુમાન प्रयासमा रीते ४२ नये. "यः पू मयोपलब्धः स एवायं पुरुषः तथैव प्रत्यभिज्ञायमानत्वात् उभयाभिमतपुरुषवत्'२ ५३पने में पता नयो हतो, તેજ પુરૂષ આ છે, કેમકે મેં એને તે જ રૂપમાં ઓળખી લીધું છે. ઉભયા लिमत ५३पनी म सही 'य: पूर्वं मयोपलब्धः' माटो मा ५६ समाधी छ. 'स एवायं पुरुषः' मा भाग साटिना छे. तथैव प्रत्यभिज्ञायमान खात' मा माग छ. 'उभयाभिमतपुरुषवत्' मा साम्य हटान्त छे. આ અનુમાન પ્રયોગમાં પુરૂષ વિશેષને વિશેષરૂપથી મૂકવામાં આવ્યું છે. For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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