SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगद्वारसूत्रे हलेन हालिकः, शकटेन शाकटिकः, रथेन रथिकः, नावा नाविकः । स एष मिश्रः। स एष द्रव्यसंयोगः। अथ कोऽसौ क्षेत्रसंयोगः ?, क्षेत्रसंयोगः-भारतः एरवतः, हैमवतः ऐरण्यवतः, हरिवर्षः, रम्यकवर्षः देवकुरुजः उत्तरकुरुनः, पूर्ववैदेहकः, अपरद्रव्य हैं । छत्र जिसके पास है, वह 'छत्री' । दण्ड जिसके पास है, वह 'दण्डी' पट जिसके पास है, वह 'पटी' इत्यादि नामवाला कहलाता है। (से किं तं मीसए ? मीसए-हलेा हालिए सागडेणं सागडिए, रहेणं रहिए नावाए नाविए, से तं मीसए से तं दव्य संजोगे) हे भदन्त! मिश्र द्रव्य संयोगज नाम कैसा होता है ? उत्तर-मिश्र द्रव्य संयोगज नाम ऐसा होता है-जैसे-हल के संयोग से हालिक, शकट के संयोग से शाकटिक, रथ के संयोग से रथिक नाव के संयोग से नाविक ये सब नाम सचित्त अचित्त उभय द्रव्य संयोगज हैं। इस मिश्र द्रव्य संयोगज नाम में सचित्त द्रव्य संयोग नाम हालिक, शाकटिक आदि में हल आदि पदार्थ अचित्त और बलीवर्द-बैल आदि पदार्थ सचित्त हैं। इस प्रकार के और भी जितने नाम हों वे सब द्रव्य संयोगज नाम जानना चाहिये। (से किं तं खित्त संजोगे) हे भदन्त ! क्षेत्र संयोग-क्षेत्र संयोग से निष्पन्न नाम कैसा होता है ? ___ उत्तर-(खित्तसंजोगे) क्षेत्रसंयोगज नाम ऐसा होता है-(भारहे છે તે છત્રી, દંડ જેની પાસે છે તે દંડી, પટ જેની પાસે છે તે પટી, વગેરે नामयी नापित थाय छे. (से कि तं मीसए ? मीसप-हलेण हालिए सागडेणं मागडिए, रहेणं रहिए नावाए, नाविए, सेत्तं मीत्रए सेत्तं दब संजोगे) हे महत! મિશ્ર દ્રવ્ય સંયોગ જ નામ કેવું હોય છે? ઉત્તર-મિશ્ર કવ્ય સંયોગ જ નામ એવું હોય છે જેમ કે હળના સંગથી હાલિક, શકટના સંગથી શાકટિક, રથના સંયોગથી રથિક, નાવના સગથી નાવિક, આ સર્વનામો સચિત્ત અચિત્ત અને ઉભય દ્રવ્ય સાગ જ છે. આ મિશ્ર દ્રવ્ય સંગ જ નામમાં સચિત્ત દ્રવ્ય સંગ નામ હાલિક, શાકટિક વગેરેમાં હલ વગેરે પદાર્થ અચિત્ત અને બલી વર્લ્ડ (બળદ) વગેરે પદાર્થ સચિત્ત છે. આ જાતના બીજા પણ જેટલાં નામે છે તે સર્વે દ્રવ્ય સંગ नाम छ मेम सम यु. (से कि त खित्तसंजोगे) 8 महन्त ! क्षेत्र સંગ-ક્ષેત્ર સંગથી નિષ્પન નામ કેવું હોય છે? उत्तर-(खित्तसंजोगे) क्षेत्र सये! 4 नाम से डाय छे. (भारहे For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy