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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २१७ व्यन्तरादीनामौदारिकादिशरीरनि० ४७३ अनंत होते हैं। (वाणमंतराणं भंते ! केवइया तेयगसरीरा पण्णता ?) हे भदन्त ! व्यन्तरदेवों के कितने तैजसशरीर कहे गये हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहा एएसिं चेव वेउवियसरीरा तहा तेयग. सरीरा भाणियन्वा) जिस प्रकार के इनके वैक्रिय शरीर कहे गये हैं, वैसे ही इनके तैजस शरीर जानना चाहिये। अर्थात् बद्धवैक्रिय के जैसा इनके बद्ध तैजस शरीर असंख्यात होते हैं और मुक्त तेजस शरीर मुक्त वैक्रियशरीर के जैसा प्रमाण में अनंत होते है। (एवं कम्मय सरीरा वि भाणियव्या) इसी प्रकार से कार्मण शरीरों का प्रमाण भी जानना चाहिये। (जोइसियाणं भंते ! केवया ओरालियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा जहा नेरइयाणं तहा भाणियवा) हे भदन्त ! ज्योतिष्क देवों के औदारिक शरीर कितने कहे गये हैं ? हे गौतम ! ज्यतिष्कों के औदारिक शरीर नारकों के औदारिक शरीरों के जैसा कहे गये हैं-अर्थात्-बद्ध औदारिक शरीर तो ज्योतिष्कों के होते नहीं हैं । मुक्त औदारिक शरीर होते हैं, सो वे पूर्वभवों की अपेक्षा होते हैं, इसलिये इनका प्रमाण अनंत हैं । (जोइसिया णं भंते केवइया वेउ. भुत सौहार शरीरानी म मन त डाय छे. (वाणमंतराणं भंते ! केवइया तेयगसरीरा, पण्णत्ता ?) 3 महन्त ! व्यत२ हवाना तेसशरी। ei . पामा माया छ १ (गोयमा) : गौतम ! (जहा एएसिं चेव वेउब्वियसरीरा तहा तेयगसरीरा भाणियव्वा) २ प्रमाणे समानां वैठियशरी। उवामा આવ્યાં છે, તે પ્રમાણે જ એમનાં તેજસ શરીર વિષે પણ જાણવું જોઈએ. એટલે કે બદ્ધ વૈકિયની જેમ એમનાં બદ્ધ તૈજસ શરીરે અસંખ્યાત હોય છે. અને મુકત તેજસ શરીરે મુકત વૈક્રિયશરીરોની જેમ પ્રમાણમાં અનંત હોય छे, (एवं कम्मयसरीरा वि भाणियवा) मा प्रमाणे भए शरीनु प्रमाण ५९५ नवु नये. (जोइसियाणं भंते ! केवइया ओरालियसरीरा पण्णता ? गोयमा जहा नेरइयाण तहा भाणियव्वा) महत ! न्याति हवाना मोहारिक શરીર કેટલાં કહેવામાં આવ્યાં છે ? હે ગૌતમ ! યેતિકોના ઔદારિક શરીરે નારકેના દારિક શરીરની જેમ કહેવામાં આવ્યાં છે. એટલે કે બદ્ધ દારિક શરીર તે જતિષ્કોના હતાં નથી મુકત ઔદારિક શરીરે હોય છે. તે પૂર્વભવોની અપેક્ષાથી હોય છે. એટલા માટે એમનું પ્રમાણ मन त छे. (जोइसियाणं भंते केवइया वेउव्वियसरीरा पण्णत्ता) सन्त! अ० ६० For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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