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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगन्द्रिका टीका सूत्र २१५ द्वीन्द्रियादीनामौदारिकादिशरीरनि० ४४३ याभिरुत्सपिण्यवसर्पिणीभिः कालतः । क्षेत्रतः अङ्गुलपतरस्य आवलिकायाः, असंख्येषभागप्रतिभागेन । मुक्तानि यथा औधिकानि औदारिकशरीराणि तथाभणितव्यानि । वैक्रियाहारकशरीरागि बद्धानि न सन्ति । मुक्तानि यथा औघि कानि औदारिकशरीराणि तथा भणितव्यानि । तैजसकामकशरीराणि यथा एतेपामेव औदारिकशरीराणि तथा भणितव्यानि । यथा द्वीन्द्रियागां तथा त्रीन्द्रियवतुरिन्द्रियागामपि भगिव्यानि। पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानामपि औदारिकही है । इनमें कोई भेद नहीं है । (मुकल्लया जहा ओहिया ओरालिय सरीरा तहा भाणियव्या) द्वीन्द्रियजीवों के मुक्त औदारिक शरीर सामान्य मुक्त औदारिक शरीरों के जैसा अनन्त जानना चाहिये । (वेवियाहारगसरीस घद्धेल्लया णत्थि) द्वीन्द्रियजीवों के पद्ध वैक्रिय शरीर, और घद्ध आहारक शरीर नहीं होते हैं। (मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालियसरी रा तहा भाणियव्या) मुक्त वैक्रियशरीरों का एवं मुक्त आहारक शरीरों का प्रमाण मुक्त औदारिक शरीरों के प्रमाण के जैसा यहां अनंत जानाना चाहिये। (तेयगकम्मयसरीरा जहा एएसिं चेव ओरालियसरीरा तहा भाणियन्वा) तेजस और कार्मण शरीर इनके औदारिक शरीरों के जैसा जानने चाहिये । (जहा वेइं. दियाणं तहा तेइ दियचउरिदियाण वि भाणियचा) जिस प्रकार यह दीन्द्रियजीवों के शरीरों की प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार से त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के शरीरों की भी प्ररूपणा समझनी चाहिये। 'पचे दियतिरिक्ख जोड्याण वि ओरालियसरीरा एवं चेव भाणि नथी. (मुक्केल्लया जहा ओहिया ओगलिय सरीरा तहा भाणियव्वा) द्रिय જીના મુકત ઓદારિક શરીર સામાન્ય મુકત ઔદારિક શરીરની જેમ मनन्तला नसे. (वेउठिबयाहारगसरोरा बद्धेल्लया णत्थि) दीन्द्रय वाना ५ जय शरीर मन मद्ध डा२४ शरी। उता नथी. (मुक्के ल्या जहा ओहिया ओरालियसरीरा तहा भाणियब्वा) भुत वैष्य शरीरानु અને મુકત આહારક શરીરોનું પ્રમાણ ઔદારિક શરીરના પ્રમાણની જેમ सही सनत न से . (तेयाकम्मयसरीरा जहा एएसि चेव ओग. लियसरीरा तहा भाणियवा) समन तेस भने म । शरी। मोहार शरीरानी म Mp4 नये. (जहा बेइंदियाणं तहा तेइंदियचउरिदियाण वि भाणियब्वा) मा दीन्द्रय याना शरी।नी प्र३५६५। ४२वामा मा છે તેમજ ત્રીન્દ્રિય અને ચતુરિન્દ્રિય જીના શરીરની પ્રરૂપણા સમજવી For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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