SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 442
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ममुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र२१४ पृथ्वीकायिकादीनामौदारिकादिशरीरनि० ४२५ तहा भाणियवा। तेयगकम्मयसरीरा जहा पुढविकाइयाणं तहा भाणियवा। वणसइकाइयाणं ओरालियवेउवियआहारगसरीरा जहा पुढविकाइयाणं तहा भाणियबा । वणस्सइकाइयाणं भंते! केवइया तेयगसरीरा पण्णता? गोयमा! तेयगसरीरा दुविहा पण्णत्ता, जहा ओहिया तेयगकम्मयसरीरा तहा वणस्सइकाइयाणवि तेयगकम्मयसरीरा भाणियबा ॥२१॥ छाया-पृथिवीकायिकानां भदन्त ! कियन्ति औदारिकशरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! औदारिकशरीराणि द्विविधानि पज्ञप्तानि, तद्यथा-बद्धानि च मुक्तानि च । एवं यथा औधिकानि औदारिकशरीराणि तथा भणितव्यानि । पृथिवीकायिकानां अथ सूत्रकार पृथिवीकायिक आदि जीवों में औदारिक आदि शरीरों की प्ररूपणा करने के निमित्त 'पुढविकाइयाणं' इत्यादि सूत्र कहते हैं-पुढविकाइयाणं भंते ! इत्यादि। __शब्दार्थ-(पुढधिकाइयाणं भते! केवड्या ओरालि यसरीरा पण्णता?) हे भदन्त ! पृधियोकायिक जीवों के औदारिक शरीर कितने कहे गये हैं ? (गोयमा ! ओरालियसरीरा दुविहा पत्ता ) हे गौतम ! औदारिक शरीर दो प्रकार के कहे गये हैं-(तं जहा) जैसे (बहेल्लया य मुक्केल्लया य) एक बद्ध औदारिक शरीर और दूमरे मुक्त औदारिक शरीर (एवं जहा. ओहिया ओरालियमरीस तहा माणियन्दा) यहा बद्ध औदारिक शरीर असंख्यात होते हैं-पर यह असंख्यातरूप प्रमाणता लघुतर असं. હવે સૂત્રકાર પ્રકિવીક યિક વગેરે ના દારિક વગેરે શરીરની ५३५। ४२११ माटे 'पुढनिकाइयाणं' पोरे सूत्र छ, "पुढविक इयाणं भंते ! त्यादि। हाथ-'पुढविक इयाणं भंते ! केवइया ओरालियसरीरा पण्णत्ता) 3 ભદન્ત ! પૃથિવીકાયિક જાના દારિક શરીરે કેટલાં કહેવામાં આવ્યાં છે ? (गोपमा ! ओरालियसरीरा दुविहा पण्णत्ता) : गौतम ! मोहा२ि४ शरी। मे १२ वामा मयां छे (तं जहा) रेभ (अद्धेल्लयाय मुक्केल्लया य) मे मद्ध मोहा२ि४ शी२ भने ult भु। मौरि: शरी२ (एवं जहा भोहिया धोरालियचरीरा तहा भाणियव्वा) मी सन्यात ३५ प्रमाणुता भ० ५४ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy