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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir daun. ___अनुयोगद्वारसूरी श्रीणि वा, उत्कर्षेण सहस्रपृथक्त्वम् । मुक्तानि यथा औदारिकस्य तथा भणितध्यानि । कियन्ति खलु भदन्त ! तैजसशरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! तेजसशरीशरीर हैं, वे चतुर्दशपूर्वधारी के सिवाय और किसी दूसरे के नहीं होते हैं। इनका अन्तर-विरहकाल-जघन्य से एक समय का है और उत्कृष्ट से छह मास तक का है। यह बात अन्यत्र कही गई है। इसलिये जो बद्ध आहारक शरीर हैं-वे कभी होते हैं और कभी नहीं होते हैं । (जह अस्थि जहण्णेणं एगो वा दो वा तिणि वा) यदि होते हैं तो जघन्य से एक दो या तीन हो सकते हैं और (उकोसेणं सहस्सपुहुत्त) उस्कृष्ट से सहस्रपृथक्त्व तक हो सकते हैं । दो आदि से लेकर नव तक की संख्या का नाम पृथक्त्व है । (मुक्केल्लया जहा ओरालियसरीरा तहा भाणिघवा) मुक्त जो आहारक शरीर हैं, वे मुक्त औदारिकशरीर के जैसा ही जानना चाहिये । परन्तु इनमें इतनी विशेषता है कि जिस जिस प्रकार औदारिक शरीर को अनंत भेदवाला कहा गया है उसी प्रकार इस शरीर को भी भेदवाला कहा गया है-परन्तु अनन्त के अनन्त भेद होते हैं इसलिये यहां पर लघुतर अनन्त लिया गया है, ऐसा जानना चाहिये । अब सूत्रकार तेजस शरीरों का निरूपण करते हैं। (केवड्या णं भंते ! तेयगसरीरा पण्णता?) हे भदन्त ! तेजस કોઈને પણ હતાં નથી એમનું અંતર-વિરહાકાળ-જઘન્યથી એક સમય જેટલું છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી ૬ માસ સુધીનું છે. આ વાત બીજા સ્થાને પણ કહેવામાં भावी छ. सटा भाट यारे डाय छ, अने या२४ तi नथी. (जइ अस्थि जहण्णेणं एगो वा दो तिण्णि वा) ने डाय छ त धन्यथा ये मे छ भने (उक्कोसेणं सहस्सपुहुत्तं) Bथा सहस पृथत्व सुधी २४ ॥ ®. माहिया भासन न सुधीनी भ्यानु नाम पृथप छे. (मुक्केल्लया जहा ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा) भुत २ माडार ६ शरीर छ, त મુકત ઔદારિક શરીરની જેમ જ જાણવું જોઈએ પરંતુ આમાં આટલી વિશેષતા છે કે જેમ દારિક શરીરને અનંતભેદ યુકત કહેવામાં આવ્યું છે, તેમ આ શરીરને પણ અનંત જેઠવાળું કહેવામાં આવ્યું છે. પરંતુ અનંતના પણ અનત ભેદ હોય છે. એટલા માટે અહીં લઘુતર અનંતનું ગ્રહણ કરવામાં આવ્યું છે. તેમ સમજવું જોઈએ હવે સૂત્રકાર તૈજસ શરીરનું નિરૂપણ કરે છે– (केवइयाणं भंते ! तेयगसरीरा पण्णत्ता १) मत! ते शरीर ai स्वामी यां (गोयमा ! वेयगसरीरा दुविहा पण्णत्ता) ३ गौतम ! For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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