SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मासुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २११ औदारिकादिशरीरसंख्यानिरूपणम् ३८३ खलु यानि तानि बानि तानि खलु असंख्येयानि असंख्येयाभिरुत्सपिण्यवसर्पिणीघिरपहियन्ते कालतः, क्षेत्रतः असंख्येया लोकाः। तत्र खलु यानि तानि मुक्तानि अब सूत्रकार औदारिक आदि शरीरो की संख्या प्रकट करते हैं'केवइया णं भंते ! इत्यादि। शब्दार्थ--(केवड्या णं भंते ! ओरालियसरीरा पत्ता १) है भन्दत ! औदारिक शरीर कितने कहे गये हैं ? (गोयमा! ओरालिय सरीरा दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! औदारिक शरीर दो प्रकार के कहे गये हैं । (तं जहा) वे प्रकार ये हैं-(बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा ) एक बद्ध और दूसरा मुक्त । (तस्थ गं जे ते बरेल्लगा तेणं असंखिज्जा असं. खिजाहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं अवहीरति कालओ) इनमें जो क्र औदारिक शरीर है वे सामान्य से असंख्यात है। यदि एक २ समय पर एक-एक औदारिक शरीर व्यवस्थापित किया जावे तो असंख्यात उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के समस्त समयों पर एक २ मौदारिक शरीरस्थापित किये जा सकते हैं। इस प्रकार काल की अपेक्षा असंख्यात हैं। इसका तात्पर्य यह है कि असंख्यात उत्सर्पिणी और असंख्यात अवसर्पिणी काल के जितने समय हैं उतने बद्ध भोदारिक शरीर हैं। असंख्यात उत्सर्पिणी और असंख्यात अय. હવે સૂત્રકાર ઔદારિક વગેરે શરીરની સંખ્યા પ્રકટ કરે છે– “केवइया णं भंते ! "त्याह 14-(केवइया पं. भंते ! ओसलिय सरीरा पण्णत्ता १)सत! मोहाशरी teai Bामा माव्या छ? (गोयमा ! ओरालियसरीरा विहा पण्णचा) गौतम! महरिशरी२ रन। वामां माया छे. (नहा) ते प्रा। मा प्रमाणे छे. (बद्धेल्लगाय मुक्केल्लगाय) 0 सन भी भुत. (तस्थ णं जे ते बद्धेल्लगा तेणं असंखिज्जा असंबिमाहिं उस्सप्पिणी ओसप्पिणीहिं अबहीति कालओ) मामा रे मोहार शरीर छत સામાન્યથી અસંખ્યાત છે. જે એક એક સમય પર એક એક દારિકશરીર વ્યવસ્થાપિત કરવામાં આવે તે અસંખ્યાત ઉત્સર્પિણ અને અવસર્પિણના સમસ્ત સમયે પર એક એક ઔદારિક શરીર સ્થાપિત કરી શકાય છે. આ રાતે કાળની અપેક્ષા અસંખ્યાત છે આનું તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે અસં. અયાત ઉત્સર્પિણી અને અસંખ્યાત અવસર્પિણી કાલના જેટલા સમય છે તેટલાં બદ્ધ ઔદારિક શરીરે છે. અસંખ્યાત ઉત્સર્પિણી અને અસંખ્યાત For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy