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३५८
अनुयोगद्वार
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टीनाम् । तत्र खलु एकमेकं वालाग्रम् असंख्येयानि खण्डानि क्रियते । तानि खलु बालाग्रखण्डानि दृष्टयवगाहनातः असंख्येयभागमात्राणि, सूक्ष्मस्य पनकजीवस्य शरीरावगाहनाaोऽसंरूपेयगुणानि । तानि खलु वालाग्रखण्डानि नो अग्नि दहेत् यावत् नौ पूतितां हन्यमागच्छेयुः । ये खलु तस्य पत्यस्य आकाशप्रदेशास्तैर्वालाग्र खण्डे स्पृष्टा वा अनास्पृष्टा वा ततः खलु समये समये एकमेकम् आकाशप्रदेशम् अपाय यावता कालेन तत् पल्यं क्षीणं यावद् निष्ठितं भवति, तदेतत् सात दिन तक के ऊगे हुए बालाग्रों से भरो। (तस्थ णं एगमेगे बालग्गे असंखिज्जाई खंडाई कज्जइ) इन भरे हुए बालाग्रों से एक २ बालाग्र के केवली की बुद्धि से असंख्यात २ खंड करो । ( ते णं बालग्गखंडा दिट्ठि ओगाहणाओ असंखेज्जह भागमेत्ता, सुमस्स पणगजीवस्स सरीरो गाहणाओ असंखेज्जइगुणा) ये वालाग्र- खंडदृष्टिपथ प्राप्त वस्तु की अपेक्षा असंख्यातवें भाग मात्र और सूक्ष्म पणक जीव की शरीरावगाहना की अपेक्षा असंख्यात गुणें बड़े होते हैं। (ते णं वालग्गखंडा णो अग्गी डज्जा जाव णो पूहत्ताए हन्त्रमागच्छेज्जा) ये बालाग्र खंड उस पल्प में इस रीति से भरना चाहिये कि - " जिससे उन पर अग्नि हवा आदि का प्रभाव काम न कर सके और न वे सड़ गल ही सकें । (जेणं तस्स पल्लम्स आगासपएसा तेहि बालगाखंडेहि आफुण्णा वा अणाकुण्णा वा) उन भरे हुए बालाग्रखंड़ों से उस पल्य के आकाश प्रदेश चाहे व्याप्त हों चाहे न भी हों (तओ णं समए समए एगमेगं
दिवस सुधीना भासाथ लश्वामां आवे (तत्थ णं एगमेगे बालो असंखिज्जाहूं खंडाई कज्जड़) या सपूरित मात्रामाथी थे ! साधने विधीनी बुद्धि वडे अस'च्यात असख्यात अउ उरवामां आवे ( से णं बालग्गखंडा दिट्टि ओगाहणाओ असंखेज्जभागमेत्ता, सुडुमस्स पणगजीवश्स सरीरोग्गाहणाओ असंखेज्जइ गुणा २५ બાલાચ ખંડો દષ્ટિપથ પ્રાપ્ત વસ્તુની અપેક્ષા અસ’ખ્યાતમાં ભાગ માત્ર અને સૂક્ષ્મ પણુક જીવની શરીરાવગાહનાની અપેક્ષા अस'ज्यातशत्रुा होय छे. (हे बालगखंडा णो अग्गी उहेज्जा जाव पूइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा) मा मासाश्रम । ते पदयमां सेवी रीते लवा लेह જેથી તેમની ઉપર અગ્નિ, પુત્રન વગેરેની અસર થાય નહિ તે કહી શકે नहि तेभन खोजणी शडे नडि. (जे णं तस्स परलस्स आगासपरसा तेहि बालग्गखंडेहि आफुण्णा वा अणाकुण्णा वा) ते लरेसा वासाश्रम अभांथी ते पस्यना महाशप्रदेश। लखें व्याप्त हाय है न पा होय. (तओण' समय समए एगमेग
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