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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मैनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २०८ क्षेत्रपल्योपमनिरूपणम् तद् व्यवहारिकं तद् यथा नाम पल्यं स्याद योजनम् आयामविष्कम्भेण, योजना उद्वेधेन तत्रिगुण सविशेष परिक्षेपेण । तत् खलु पल्यम् ऐकाह्निकद्वयतिकत्रयडिक यावद् भृतं चालायकोटीनाम् । तानि खलु वालाग्राणि नो अग्निदहेत, नो पायुहरेत् नो कुथ्येयुः, नो परिध्वंसेरन् , नो पतितया हव्यमागच्छेयुः । ये खलु तस्य परयस्य आकाशपदेशाः तैालायैः आस्पृष्टाः, ततः खलु समये समये एकमेहारिए य) १ सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम और दूसरा व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम । (तत्थ णं जे से सुहमे से ठप्पे) इनमें जो सूक्ष्म है, उसका कथन व्या. वहारिक के बाद किया जावेगा-इसलिये उसे अभी नहीं कहा जाता है। (तस्थ णं जे से वावहारिए से जहानामए पल्ले सिया) इनमें जो व्यावहारिक है, वह इस प्रकार से है-कल्पना करो-कोई एक पल्य हो (जोयणं आयामविक्खंभेणं जोयणं उन्हेणं) एक योजन लंबा एक योजन चौडा और एक ही योजन गहरा वह हो। (तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेण) इस की वृत्त-परिधि कुछ अधिक तिगुणी हो । (से णं पल्ले गाहिय बेयाहिय तेयाहिय जाव भरिए बालग्गकोडीण) इस पल्य को एक दिन दो दिन तीन दिन यावत् ७ सात दिन तक के बालानों से भरा हुआ हो। (ते णं बालग्गा णो अग्गी डहेजा जाव णो पूइत्ताए इन्धमागच्छेज्जा) ये बालाग्र वहां इस रूप से भरे जावे कि-'जिन पर भग्नि वायु आदि का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ सके और न ये सड गल सके । अब (जे णं तस्स पल्लस्स आगासपएसा तेहिं बालग्गेहि क्षेत्र पक्ष्ये।५५ मने भी या१४.२४ ५८ये। ५म (तत्थ णं जे से सुहुमे से उप्पे) આ સર્વેમાં જે સૂક્ષમ છે, તેનું કથન વ્યાવહારિક પછી કરવામાં આવશે (સહ્ય णं जे से वावहारिए से जहानामए पल्ले सिया) मा २ व्यावहारि छ, त । प्रभारी छ. अम विया२ ७२ : ५६य हाय. (जोयणं आयामविक्खंभेगं जोयण उठवे हेण) मे 2011 AiRI, ४ यौन पहाणे भने मे यान 31 डाय. (तं तिगुण सविसेसं परिक्खेवेणं) तेनी वृत्त-परिधि ४ यारे ! .य. (से णं पल्ले एगाहियबेयाहिय तेया हिय जाव भरिए बालग्गकोडीण) A५६५२ से हिसये ह र हिस यावत् ७ हिवस सुधीन। मालाओथी से पूरित य. (ते गं बालग्गा णो अग्गी डहेजा जाव णो पृहत्ताए हव्व मागच्छेज्जा) मा मासाश्री मां से प्रभाए भरपामा भावे, જેમની ઉપર અગ્નિ, વાયુ વગેરેની કોઈ પણ જાતની અસર થઈ શકે નહિ. भन त सडी नहि तमा सामणी श न. ३ (जेणं सस्स पलस्स For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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