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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२८ अनुयोगद्वारसूत्र प्रज्ञप्ता ?, गौतम ! जघन्येन चतुर्भागपल्योपमम्, उत्कर्षेण पल्योपमं वर्ष सहस्राभ्यधिकम् । चन्द्रविमानानां भदन्त ! देवीनां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन चतुर्भागपल्योपमम् । उत्कर्षेण अईपल्योपमं पश्चाशताद् वर्ष सहस्ररम्यधिकम् । मुरविमानानां भदन्त । देवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन चतुर्भागपल्योपमम्, उत्कर्षेण पल्योपमं वर्ष सहस्रा. गाणं भंते ! देवाणं केवयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) हे भदन्त ! चंद्रविमानोंके देवों की कितने काल की स्थिति कही गई है ? (गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलिओवम उक्कोसेणं पलिभोवमं वाससयसहस्समन्महिय) गौतम ! जघन्य से तो पल्य के चौथे भागप्रमाण और उत्कृष्ट से एक लाख वर्ष अधिक पल्योपम प्रमाण कही गई है। (चंदविमाणाणं भंते देवीणं केवइयं कालं ठिई पत्ता ) हे भदंत ! चन्द्रविमान के देवियों की कितने काल की स्थिति कही गई है ? (गोयमा ! जहन्नेण च उभागपलि भोवम, उक्कोसेणं पलिओवमं पण्णासाए वास सहस्सेहि अन्भहियं) हे भदन्त ! चन्द्रविमानों की देवियों की स्थिति जघन्य से तो पल्य के चोथेभाग प्रमाण कही गई है और उत्कृष्ट से ५० हजार वर्ष अधिक अर्द्ध पस्योपम प्रमाण कही है। (स्रविमोणाणं भंते देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णता ?) हे भदन्त सूर्य विमानों के देवों की स्थिति कितने कालकी की कही गई है ? (गोयमा ! जहण्णेणं MP4 मधि मा ५६५प्रभy ४ामा भावी छ. (चंदविमाणाणं भंवे! देवाणं केवइय कालं ठिई पण्णत्ता १) 3 महत! यं द्रविमानान वानी eat सनी स्थिति वामां भावी छ ! (गोयमा ! जहण्णेणंचउभागपलिओवम उक्कोसेणं पलिओवम वाससयसहस्समब्भहिय) ૌતમ ! જઘન્યની અપેક્ષાએ તે પત્યના ચોથા ભાગ પ્રમાણ અને ઉકથી એક લાખ વર્ષ અધિક પલ્યોપમ પ્રમાણ કહેવામાં આવી છે. (चंदविमाणाणं भंते ! देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ) महत ! यद्रविमानना पीयानी an सनी स्थिति अपामा मावी छ ! (गोयमा ! जो चउभागपलिओवम' पण्णासाए उक्कोसेणं अद्धपलिओवम वाससहसेहिं अब्भहिय) 3 महत! यद्रविमानानी हवामान स्थितियनी અપેક્ષાએ તે પત્યના ચોથા ભાગ પ્રમાણ કહેવામાં આવી છે અને ઉત્કથી ५० २ १ मधि मई ५त्यापम प्रा ४ामा भावी छे. (सरवि. माणाणं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ) 3 महत ! सूर्य विमानाना देवानी स्थिति ८ सनी ४३वामा भावी छ ? गोयमा ! जहण्णेणं चउ. For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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