SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 336
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " कम ५३ हजार अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २०७ असुरकुमारादीनामायुः स्थितिनिरूपणम् ३१९ गर्भव्युत्क्रान्तिकरः परिसर्पस्थळचरपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूतम् उत्कर्षेण पूर्वकोटिः । अपर्याप्त कम भव्युत्क्रान्तिकोरः परिसर्पस्थल वरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कर्षेणापि अन्तरर्मुहूर्त्तम् । पर्याप्त कगर्भव्यु क्रान्तिकोर: परिसर्पस्थळचरपञ्चेन्द्रियवाससहस्साई अंतोमुहुतूणाई) पर्यातक संमूच्छिमजन्मवाले उरः परिसर्पथलचर पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों की जघन्यस्थिति तो अन्तमुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहर्त्त वर्ष की है । (भवतिय परिसप्पधलयर पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा-गोषमा जहन्नेणं अंतोमुद्दत्तं उकोसेणं पुचकोडी) गर्भ जन्मवाले उपरिसर्प थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों की स्थिति जघन्य से अंतर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट से एक करोड पूर्व की है। (अपजत भवतिय उरपरि सप्पलघरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा-गोयमा ! जहणेण वि अंतोमुहत्त उक्कोसेण वि अंतमुत्त) अपर्यातक गर्भजन्मवाले उरः परिसर्प थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों का स्थिति जघन्य से भी अंतर्मुहर्त की है और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त की है । ( अपज्जन्तगगन्भवतिय उरपरिसप्पथलयर पंचिदियतिरिक्ख जोणियाणं - पुच्छा - गोयमा । जहणेणं अंतोमुहतं उक्कोसेणं अतोमुहृतॄणा पुन्यकोडी) पर्यातक गर्भज उरः परिसर्प थलचर dवण्णं वाससहस्वाइ' अतोमुडुतूणाई) पर्यास संभूर्खिम भन्यवाणा પરિસ' થલચર પ'ચેન્દ્રિય તિય ચાની જઘન્ય સ્થિતિ તે અન્તર્મુહૂત્તની हमने उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त न्यून 43 इन्नर वर्षांनी छे (गब्भवक्कंतिय उरपरिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोगियानं पुच्छा - गोयमा ! जहन्नेणं अ'तोमुहुत्तं उक्कोसेण पुव्वकोडी) गर्भभन्भवाणा उरःपरिवर्य यथेન્દ્રિય તિય ચાની સ્થિતિ જઘન્યથી અન્તર્મુહૂત્તની છે અને ઉત્કૃષ્ટથી એક डरोड पूर्वनी छे. ( अपज्जत्तगब्भवक्कंतिय उरपरिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्ख. जोणियाण' पुच्छा - गोयमा ! जहणेण वि अतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अतो मुद्दत्तं ) અપર્યામક ગભ જમવાળા ઉર:પરિસપ થલચર પચેન્દ્રિય તિય ચાની સ્થિતિ જઘન્યની અપેક્ષાએ પણ અંતર્મુહૂત્ત'ની છે અને ઉત્કૃષ્ટથી પણુ અન્તમુહૂત્તની छे. (पज्जतगगन्भवतिय उरपरिसप्पथ यरपोचदियतिरिक्खजोणियाण पुच्छागोयमा ! जण अतोमुहुत्तं उत्कोणं अतो मुहुत्तणा पुव्वक्कोडी) पर्या ગર્ભ જન્મવાળા ઉર; પરિસપ્થલચર પચેન્દ્રિય તિય ચાની સ્થિતિ જલ્લા For Private And Personal Use Only €२:
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy