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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org , ३१६ अनुयोगद्वारसूत्रे , तिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षेण चतुरशीतिं वर्षसहस्राणि । अपर्याप्त मूच्छिम चतुष्पदस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि अन्तर्मुहूर्त्तम् उत्कर्षेणावि अन्तर्मुहूर्त्तम् । पर्याप्तकसंमूर्ति चतुष्पदस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्' उत्कर्षेण चतुरशीतिवर्षसहस्राणि अन्तर्मुहूर्तीनानि । गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पदस्थल वरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, अंतोमुहुत्त उक्को सेणं चउरासीइं वाससहस्साइ) जो थलचरचतुष्पद् तिर्यच पंचेन्द्रिय जीव संमूर्किछमजन्मवाले हैं उनकी स्थिति जघन्य से तो अंतर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट से चौरासी हजार वर्ष की है । (अपज्जन्तयसंमुच्छिम उप्पल परपंचिदिद्यतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा-गोयमा ! जहणेण वि अंतोमुहुत्त उक्कोसेण वि अंतोमुस) जो धलचर चतुष्पद तिर्यश्व पंचेन्द्रिय जीव संपूच्छिमजन्मबाले हैं और अपर्याप्तक हैं, उनकी स्थिति जघन्य से भी अंतर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त की है । (पज्जत्तपसमुच्छिमच उप्पयधलय र पंचेदियतिरिक्ख जोणियाणं पुच्छा-गोयमा जहणेणं अंतोमुहतं उक्कोसेणं चउरासी बाससहस्ताई' अंतो मुहुतूणाई) संमूच्छिम जन्मवाले जो चतुपद थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च जीव पर्यातक है, उनकी जघन्य स्थिति तो अंत की है और उत्कृष्ट स्थिति अंतर्मुक ८४ चौरासी हजार वर्ष की है । (गग्भवतियच उपयथल पर पंचे दियतिरिक्खजो Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir याणं पुच्छा गोयमा ! जहणेणं अतोमुहृत्तं उक्कोसेणं चउरासीइं वास सहरसाई) જે થલર ચતુષ્પદ તિયચ પંચેન્દ્રિય જીવેા સ.મૂર્ચ્છિમ જન્મવાળા છે, તેમની સ્થિતિ જઘન્યની અપેક્ષાએ તેા અંતર્મુહૂત્ત જેટથી છે. અને उत्दृष्टनी अपेक्षाये ८४ २ वर्ष भेटसी छे. ( अपज्जत्तयसंमुच्छिमच उपय थलयर पंचिदियतिरिक्खजोलियाणं पुच्छा--गोयमा ! जहणेणं वि अतोमुहुत्तं कोसे व अतोमुत्तं) ने थसयर यतुष्पद्ध तिर्यय पथेन्द्रिय स भूચ્છિમ જન્મવાળા છે અને અપર્યાપ્તક છે, તેમની સ્થિતિ જઘન્યની અપેક્ષાએ પણ અંતર્મુહૂત્ત જેટી છે, અને ઉત્કૃષ્ટની અપેક્ષાએ પણ अन्तर्भुतनी छे. (पज्जतयसंमुच्छिमचउपयथलयर पंचे दिद्यतिरिकख जोणियाणं पुच्छा-गोथमा ! जहणेणं अतो मुहुत्तं उक्कोसेणं चउराली वालसहस्साइ अतो मुहुत्तणाइ) सभूमि भन्ने चतुष्पथसयर पथेन्द्रिय तिर्यय પર્યાપ્તક જીવા છે, તેમની જઘન્ય સ્થિતિ તેા અંતર્મુહૂત્તની છે અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ અંતર્મુહૂત્ત ન્યૂન ૮૪ हुन्नर वर्षानी छे (गव्भवक्कंतिय For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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