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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१० अनुयोगद्वारसूत्र बादरवनस्पतिकायिकानां जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कर्षेण दशवर्ष सहस्राणि । अपर्याप्तकवादरवनस्पतिकायिकानां जघन्येनापि अन्तर्मुहूर्तम् , उत्कर्षेणापि अन्तर्मुहूर्तम्। पर्याप्त कबादरवनस्पतिकायिकानां जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षण दशवर्षसहस्राणि अन्तर्मुहू गौनानि । द्वीन्द्रियाणां भदन्त । कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञता ? गौतम जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् , उत्कर्षेण द्वादशसंवत्सरान् । अपर्याप्तकद्वीन्द्रियाणां जीवों की स्थिति जघन्य से और उस्कृष्ट से एक अन्तर्मुहूर्त की है। (बादरवणस्लाकाइयाणं जहणणं अंमो मुहत्तं इकोसेणं दसवास सहस्साई) बादरवनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट से दस हजार वर्ष की है। (अपज्जत्तग बादरवणस्सइकाइयाणं जहण्णे ग वि अंतोमुहूतं उक्कोसेण वि अंतोमु. हुतं ) अपर्यातक पादरवनस्पलिकाधिक जीवों की स्थिति जघन्य से भी एक अंतर्मुहर्त की है और उस्कृष्ट से भी एक अन्तर्मुहूर्त की है। (पज्जत्तगपादरवणसइ काझ्याणं जहण्णेणं अंगोमुहुत्तं उक्कोसेणं दसवाससहस्साई अंतोमुत्तुगाई) पर्याप्तक चादर वनस्पतिकायिक जीवों की जघन्य से स्थिति तो एक अन्तरमुहूर्त की है और उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त कम दश हजार वर्ष की है। (वेह दिया णं भंते ! केवयं कालं ठिई पण्णत्ता) हे भदन्त ! बीन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? उत्तर-(गोयमा! जहण्णणं अंतो मुहत्तं उक्कोसेणं घारस संबच्छ. વનસ્પતિકાયિક જીવોની સ્થિતિ જઘન્યથી અને ઉત્કૃષ્ટથી એક અન્તર્મુહૂર્ત २८सी छ. (बादरवणस्सइकाइयाण' जहण्णेण' अंतोमुहुत्तं उक्कोण दसवासमहस्साई) मा६२ नति48 वानी स्थिति धन्यथा मे अन्त इतना के मन रथी १०२ १ २८वी छ. (अपज्जत्तगबादरवणस्स इकाइयाण जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) अपर्याप्त माह बनस्पतिथि: જીવની સ્થિતિ જઘન્યથી પણ એક અંતમુહૂર્તાની છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ એક मत इतनी छ. (पज्जत्तगबादरवणस्सइकाइयाण जहण्णेण अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण इसवामसहस्साई अंतोमुहूत्तूणाई) ५ मा४२ वनस्पतिथि: वानी ४. ન્યની અપેક્ષાએ સ્થિતિ તે એક અંતમુહૂર્તની છે અને ઉત્કૃષ્ટથી અંતર્મહત્ત मशार १२८सी छे. (बेइंदियाण भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता) ભત! કીન્દ્રિય ની સ્થિતિ કેટલા કાલ સુધીની કહેવામાં આવી છે? उत्तर-(गोयमा ! जहण्णेण अंतोमुहुत्तं उक्कोण बारससंवन्छराणि) : For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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