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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगद्वारसूत्र मुहूर्तम् । पर्याप्तकवादरतेजस्कायिकानां जघन्येन अन्तर्मुहर्तम् , उत्कर्षेण त्रीणि रात्रिन्दिवानि अन्तर्मुहूत्तौनानि । वायुकायिनां जघन्येन अन्तमुहूर्तम्, उत्कर्षण त्रीणि वर्षसहस्राणि । सूक्ष्मवायुकायिकानाम् औधिकानाम् अपर्याप्तकानां पर्याप्तकानां च त्रयाणामपि जघन्येनापि अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कषेणापि अन्तमुंहतम् । बादरवायुकायिकानां जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् , उत्कर्षेण त्रीणि वर्षमुहत) जो तैजसकायिक जीवों में अपर्याप्तक बादर तैजसकायिक जीव हैं। उनकी जघन्य से भीअन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट से भी अन्तमुहूर्त की है। (पज्जत्तगयादरतेउकायझ्याणं जहण्णेणं अंतो मुहुत उक्कोसेणं तिण्णि राईदियाई अंसोमुहत्तूणाई) तैजसकायिक जीवों में जो पर्याप्तक पादर तैजसकायिक जीव है उनकी स्थिति जघन्य से एकअंतर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट से तो एक अंतर्मुहूर्त कम तीन अहोरात्र की है । (वाउकाइयाणं जहण्णे. णं अंमो मुहत्तं उक्कोसेणं तिणि वाससहस्साई) वायुकायिक जीवों की स्थिति जघन्य से तो अन्तर्मुहर्त की है और उत्कृष्ट से तीन हजार वर्ष की है। (सुहमवाउकाइयाणं ओहियाणं अपज्जत्तगाणं पज्जत्तगाण य तिण्ह वि जहण्णेण वि अंतोमुहुत उक्कोसेणं वि अंतो मुहुत्त) सामान्य से सूक्ष्म वायुकायिक जीवों की अपर्याप्तक और पर्यातक सूक्ष्मवायुकायिक जीवों की स्थिति जघन्य से और उत्कृष्ट से एक अंतर्मुहूर्त की है । (पादरवायुकाइयाणं जहण्णेण अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं हुत्त) २ त143 Wwi सपर्या मा२ यि ७३ . તેમની સ્થિતિ જઘન્યથી પણ અન્તમુહૂર્ત જેટલી છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ मन्तभुडूतनी छ. (पज्जत्तगवादरतेउकाइयाण' जहण्णेण अंतोमुहुत्तं उक्को. सेण तिण्णि राइंदियाई अंतोमुहुत्तूणाई) ते॥२४॥थि: मरे पति माइ२ તેજકાયિક જીવે છે, તેમની સ્થિતિ જઘન્યથી તે એક અન્તમુહૂર્ત કમ ત્રણ पाडारा २८सी छे. (वउकाइयाण' जहण्णेण अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण तिणि वाससहस्साई) वायुयि वानी स्थिति धन्यथी तो मन्तभुइतनी छ भने अष्टथी र २ वर्ष २सी छे. (सुहमवाउकाइयाण ओहियाण अपउत्तगाण पज्जत्तगाण य तिण्ह वि जहण्णेण वि अंत मुहत्तं उक्कोसेण वि अंतोमहत्त) सामान्यथी सूक्ष्म वायुवि वानी अपर्याप्त अने पर्याप्त સૂમ વાયુકાયિક જીવોની સ્થિતિ જઘન્યથી અને ઉત્કૃષ્ટથી એક અંતર્મુહૂર્ત २क्षी छ. (बादरवाउकाइयाण जहण्णेण अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण तिण्णि वास For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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