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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५२ अनुयोगद्वारसूत्रे एको लवश्च सप्तस्तोकात्मको भवति । अत एकस्मिन् लवे एकोनपञ्चाशदुच्छ्वासनिःश्वाता भवन्ति । तथा-सप्तसप्ततिलवानामेको मुहूर्ती भवति । सप्तसप्तत्या एकोनपञ्चाशता गुणने त्रीणि सहस्राणि सप्तशतानि त्रिसप्ततिश्च उच्छवासनिःश्वासा लभ्यन्ते । अत एकस्मिन् मुहूर्ते एतावत्संख्यका उच्छ्वासनिःश्वासा भवन्तीति मूळे - ' उस्साह ' इति 'उसासनीसास' परम् । 'एएणं मुहुत्तप्पमाचौरासी लाख पूर्वाङ्ग का एक पूर्व होता है । (चउरासीइं पुव्वसयसहसाइं से एगे तुडिअंगे) चौरासी लाख पूर्व का एक त्रुटिताङ्ग होता है। (उरासीइं तुड़िगसयसहस्साइं से एगे तुडिए) चौरासी लाख त्रुटि. ताङ्ग का एक त्रुटित होता है । (चउरासीहिं तुडिअसहस्साई से पगे) अडडंगे) चौरासी लाख त्रुटित का एक अडडाङ्ग होता। (चोरासीइं अडडंग सय सहस्साई से एगे अडडे ) चौरासी लाख अडडाङ्ग का एक अडड होता है । ' एवं अववंगे अववे, हुहुअंगे, हुहुए, उप्पलंगे उप्पले, पउमंगे, पउमे, नालिणंगे, नलिणे, अच्छनिउरंगे अच्छनिउरे, अऊअंगे अ उए, पअंगे पउए, णउअंगे, णउए, चूलिअगे, चूलिया, सीसपहेलिअगे चउरासीइं सीसपहेलियंगसयसहस्साई सा एगा सीसपहेलिओ) इसी प्रकार से चौरासीलाख अडड का एक अववाङ्ग चौरासी लाख अववाङ्ग का एक अवब, चौरासी लाख अवय का एक हुनुकाङ्गचौरासी लाख हुहुकाङ्ग का एक हुहुक, चौरासीलाख हुहुक का एक उत्पलाङ्ग, चौरासी लाख उत्पलाङ्ग का एक उत्पल, चौरासीलाख उत्पल का एक पद्माङ्ग चौरासीलाख पद्माङ्ग का एक पद्म, चौरासी लाख थाय छे. (चउरासीइं पुव्व सय सहस्साई से एगे तुडिअंगे ) ८४ साथ पूर्वनु એક त्रुटितांग थाय छे. (चउरासीइं तुडिअंगप्रय सहस्त्राई से एगे तुडिए) ८४ साथ त्रुटितांग भराभर खेड त्रुटित थाय छे. ( चउरासीहि तुडिअस ह स्साई से एगे अडडंगे ) ८४ साथ त्रुटितनुं मेड सडडांग थाय छे. (चोरसीई अडडंग सहस्साई से एगे अडडे ) ८४ उडांगनुं मे अउड थाय छे. ( एवं अववंगे अव, हुहुअंगे, हुहुए, उप्पलंगे उप्पले, पउमंगे, पउमे, नहिणंगे, नलिणे, अच्छनिकरंगे, अच्छनिउरे, अऊअंगे अऊए. पउअंगे पउए, णउअंगे णउए, चूलि अंगे चूलिया, स्त्रीखपहेलिअंगे चउरासीईं सीख पहेलियंगसय सहस्सा इंसा एमा सी पहेलिआ ) या प्रमा ४८४ साउनु मे भववांग, ८४ सा અવવાંગનુ' એક અવવ, ૮૪ લાખ અવવતું એક હુડ્ડકાંગ, ૮૪ લાખ ડુડુંકાંગના એક હહુક, ૮૪ લાખ ડુહુકનું એક ઉપલાંગ, ૮૪ લાખ ઉપલાંગનુ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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