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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६२ अनुयोगद्वारसूत्रे विधीयते-क्रियते। धान्यस्याद्रवरूपत्वात् शिखा भवति, रसस्य तु द्रवरूपत्वात् बहिः शिखाया असंभवादन्तः शिखा भवति। धान्यमानाचतुर्भागवृद्धिलक्षणया अभ्यन्तरशिखया युक्तत्वादिदं रसमानप्रमाणभ्यन्तरशिखायुक्तमित्युच्यते । रसमानप्रमाणं यथा क्रियते तथोच्यते-तद्यथा-चतुःपष्टिकेत्यादि । अयं भावः-षट्पञ्चाशदधिकद्विशतपलप्रमाणं मानिकेत्याख्यं वक्ष्यमाणं रसमानं भवति । तस्या मानिकायाश्चतुषष्टितमभागनिष्पना-अर्थात् चतुष्पलप्रमाणा नहीं होती है-भीतर में होती है-अतः यह रसमान प्रमाण धान्यमान से चतुर्भागवृद्धिरूप आभ्यन्तर शिखा से युक्त कहा गया है । (तं जहा) रस का मानरूप प्रमाण जिस प्रकार से किया जाता है उस प्रकार को अब सूत्रकार कहते हैं-(चउसट्टिया ४ चउपलषमाणा बत्तीसिया ८ सोलसिया १६ अट्ठमाइया ३२ चउमाझ्या ६४ अद्धमाणी १२८ माणी २५६) २५६ पल का एक मानी नाम का रसप्रमाण होता है। इस मानी का ६४ वां भाग प्रमाण अर्थात् ४ पलप्रमाण चतुष्पष्टिका नाम का रस प्रमाण होता है । मानी का ३२ वां भाग अर्थात् ८ पलप्रमाण द्वात्रिंशका नाम का रस प्रमाण होता है। मानी का १६ वां भाग अर्थातू १३ पल प्रमाण षोडशिका नाम का रस प्रमाण होता है। मानी के आठवें भागप्रमाण अर्थात् ३२ पल प्रमाण अष्टभागिका नाम का रस प्रमाण होता है। मानी के चतुर्भागप्रमाण अर्थात् ६४ पल प्रमाण चतु. आंगिका नामक रस प्रमाण होता है। मानी के आधे भागप्रमाण अर्थात् બહાર તેની શિખા હોતી નથી અંદર હોય છે. એટલા માટે જ આ રસમાન પ્રમાણ ધાન્યમાનથી ચતુર્ભાગ વૃદ્ધિરૂપ આત્યંતર શિખાથી યુક્ત કહેવાય છે (तजहा) २सनुं मान ३५ प्रभारीत ४२वामां भाव छ त समयमा सूत्र२ ४३ छ-(चउसट्ठिया ४ चउपलपमाणा बत्तीसिया ८ सोलसिया १६, अटुमाइआ ३२, चउमाइया ६४ अद्धमाणी १२८ माणी २५६) २५६ ५बनु એક માની નામક રસ, પ્રમાણ હોય છે. આ માનીને ૬૪ મે ભાગ પ્રમાણ એટલે કે ૪ પલ પ્રમાણુ ચતુષષ્ટિક નામક રસપ્રમાણ હોય છે. માનીને ૩૨ મો ભાગ એટલે કે ૮ પલપ્રમાણ દ્વત્રિશિકા નામક રસપ્રમાણુ હોય છે. માનીને ૧૬ મે ભાગ એટલે કે ૧૬ પલપ્રમાણ છેડશિકા નામક રસ પ્રમાણ હોય છે. માનીને ૮ મે ભાગ પ્રમાણ એટલે કે ૩૨ પલ પ્રમાણે અષ્ટ ભાગિકા નામક રસ પ્રમાણુ હોય છે. માનીને ચતુર્ભાગ પ્રમાણ એટલે કે ૬૪ પલ પ્રમાણ ચતુર્ભાગિકા નામક રસપ્રમાણ હોય છે. માનીને અર્ધા For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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