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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८२० अनुयोगद्वारसूत्र वा गेयम् । एवमग्रेऽपि गेयमिति संबन्धनीयम् । 'तालसमम्' इत्यारभ्य संचारसमम्' इत्यन्तं पदषट्कं पूर्व व्याख्यातम् । गेयस्वरयोरनर्थान्तरत्वादाह-'सत्त सरा' इति । इत्थं स्वरा बोध्या इति भावः। सम्पति समस्तं स्वरमण्डलं संक्षेपेणाहपहजादयः सप्त स्वरा विज्ञेयाः, ग्रामाश्च त्रयः, मूर्च्छनाश्च एकविंशतिः तता, तन्त्री, तान इति पर्यायाः भण्यन्ते, तत्र षडूजादिषु स्वरेषु प्रत्येकं सप्तभिस्तानमीयते इत्यतः सप्त तन्त्रिकायां वीणायामेकोनपश्चाशत्ताना भवन्ति । एवमेव एकतन्त्रिकायां त्रितन्त्रिकायां वा वीणायां कण्ठेनापि वा गीयमाना एकोनपश्चाशअथवा उसके साथ मिला हुआ जो स्वर आता है , वह तंत्री समस्वर है। इसी प्रकार से ताल सम आदि के साथ भी "गेय" इसका संबंध कर लेना चाहिये । गेय और स्वर में अर्थ भेद नहीं है । इसलिये गेय से यहां स्वर लेना चाहिये । इस प्रकार ये सात स्वर हैं । तालसम से लेकर संचारसम तक के ६ पदों की व्याख्या पहिले करदी गई है। (सत्तसरा तओ गामा मुच्छणा एकवीसई, ताणा एगूणपण्णासं सम्मत्तं सरमंडलं) इस प्रकार संक्षेपसे समस्तस्वर मंडल सातस्वर, तीन ग्राम इक्कीस मूर्च्छना और ४९ तान इस प्रकार से हैं । तता, तंत्री, तान, ये सब पर्यायवाची शब्द हैं । षड्ज आदि सात स्वरों में से प्रत्येक स्वर सात तानों से गाया जाता है। इसलिये सप्त तंत्रिका वाली वीणा में ४९ ताने होती हैं । इसी प्रकार एक तंत्रिका वाली अथवा त्रितंत्रिकावाली वीणा में कंठ से भी गाई गई ताने ४९ ही होती हैं । इस प्रकार सातસાથે મિશ્રિત થયેલે જે સ્વર છે તે “તંત્રીસમ સ્વર' છે આ પ્રમાણે तla-सम वगैरे भाट ५ 'गेय' शहना स सम य गेय અને સ્વરમાં અર્થભેદ નથી એટલા માટે ગેયથી અહી સ્વર લેવું જોઈએ આ પ્રમાણે સ્વરો સાત છે “તાલ સમ”થી લઈને “સંચાર સમ” સુધીના છ पहानी व्याभ्या ५७मा ४२वाम मावी छे. (सत्तसरा तओ गामा मुच्छणा एकबीसई, ताणा एगूणपण्णासं सम्मत्तं सरमंडल) मा प्रमाणे मां समस्त १२. મંડળ-સાતસ્વર, ત્રણગામ, એકવીશ મૂન અને ૪૯ તાન-આ પ્રમાણે છે તતા તંત્રી, તાન, આ બધા પર્યાયવાચી શબ્દ છે ષડૂજ વગેરે સાત વમાંથી દરેકે દરેક સાત તાનથી ગવાય છે. એથી સસ તંત્રિકા યુક્ત વીણમાં ૪૯ તને હોય છે આમ એક તંત્રિકા યુક્ત વીણા અથવા ત્રિતંત્રિકાવાળી વીણામાં કંઠથી ગવાયેલ તાને પણ ૪ હોય છે આ પ્રમાણે સાત For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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