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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १६७ गीते हेयोपादेयनिरूपणम् ८१७ उपनीतम्-उपनयनिगमनयुक्तम्-उपसंहारयुक्तमित्यर्थः५, सोपचारम्-क्लिष्टविरुद्धलज्जास्पदार्थावाचकं सानुपासं वा गीतम् ६, मितम्-अतिवचनविस्तररहितं, संक्षिप्ताक्षरमित्यर्थः७, तथा-मधुरम्-माधुर्यगुणसमन्वितं-सुश्रव्यशब्दार्थयुक्तमित्यर्थः८, एतादृशं यत् गीतं तदेव गानयोग्यं भवति । अथ यदुक्तं त्रीणि वृत्तानौति तान्याह-'समं' इत्यादि । यत्र वृत्ते चतुर्वपि चरणेषु समानि अक्षराणि भवन्ति, तद् वृत्तं समम् । यत्र प्रथम तृतीययोद्वितीयचतुर्थयोश्च चरणयोः सामान्याक्षराणि भवन्ति तदर्धसमम् । तथा-यत्रवृसे सर्वत्र चतुर्षपि चरणेषु अक्षराणां गीत को प्रासाद गुण युक्त होना चाहिये । उपमा आदि अलंकारों से जो गीत सजा हुआ होता है वह गीत 'अलंकृत गुण वाला कहलाता है जो गीत उपसंहार से युक्त हो जाता है वह उपनीत गुण युक्त गीत माना जाता है। जो गीत क्लिष्ट विरुद्ध एवं लज्जास्पद पदार्थ का वाचक नहीं होता अथवा अनुप्रास युक्त होता है वह 'सोपचार' गीत कहलाता है। जिस गीत में वचनों का विस्तार अधिक नहीं होता है अर्थात् जो गीत संक्षिप्त अक्षरों वाला होता है, वह 'मित' गुण वाला गान है। जो गान सुश्राव्य शब्द और अर्थ वाला होता, है वह मधुर गुण युक्त गान कह लाता है । ऐसा जो गान - होता है वही गान योग्य होता है। गीत की तीन भणितियां इस प्रकार से हैं-(समं अद्धसमं चेव सव्वत्थविसमं च यं, तिण्णि वित्तपयाराई चउत्थं नोवलन्भइ) जिस वृत्त में चारों चरणों में समान अक्षर होते हैं, वह 'समवृत्त' है। जिस वृत्त में प्रथम तृतीय पादों में और हि. तीय चतुर्थ पादों में समान अक्षर होते हैं वह अर्द्ध समवृत्त है । तथा ઉપમા વગેરે અલંકારેથી જે ગીત અલંકૃત હોય છે તે ગીત અલંકૃત ગુણવાળું કહેવાય છે. જે ગીત ઉપસંહારથી યુક્ત હોય છે તે ઉપનીત ગુણ યુક્ત ગીત કહેવાય છે જે ગીત ફિલષ્ટ, વિરૂદ્ધ, અને લજજાસ્પદ પદાર્થ વાચક ન હોય અને અનુપ્રાસ યુક્ત હોય છે તે સોપચાર' ગીત કહેવાય છે. જે ગીતમાં વચનવિસ્તાર વધારે ન હોય એટલે કે જે ગીત સંક્ષિપ્ત અક્ષરે યુક્ત હોય, છે, તે “મિત” ગુણયુક્ત ગીત છે. જે ગીત સુશ્રાવ્ય શબ્દ અને અર્થવાળું હોય છે તે મધુર ગુગ યુક્ત ગીત કહેવાય છે. એવું જે ગીત હોય છે તેજ गीत पसाय डाय के जीतनी ३ मलिती मा प्रभारी छ-(समं अद्धसम चेव सम्वत्थ विसमं च यं, तिण्णि वित्तपयाराई चउत्थं नोवलगभइ) જે વૃત્તમાં ચારે ચરણમાં સમ અક્ષરે હોય છે તે “સમવૃત' છે જે વૃતમાં પ્રથમ-તૃતીય પાદમાં અને દ્વિતીય ચતુર્થ પામાં સમાન અક્ષર હોય છે તે अ० १०३ For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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