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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org spe मनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १६६ स्वरोत्पत्तिनिरूपणम् ८०७ काराः || २ || आदिमृदुम् आरभमाणाः समुद्वहन्तश्च मध्यकारे | अवसाने क्षपयन्तः, जयोऽपि गीतस्य आकाराः || ३| सू१६६ ॥ टीका 'सत्त सरा' इत्यादिएते षड्जादिसप्तस्वराः कुतः संभवन्ति = उत्पद्यन्ते ? तथा गीतस्य का योनयो=जातयो भवन्ति ? तथा गीतस्य कति समयाः कियत्कालप्रमाणा उच्छ्वासा भवन्ति ? तथा - गीतस्य कति वाकियन्तो वा आकाराः= आकृतयः - स्वरूपाणि भवन्ति ? इति चत्वारः प्रश्नाः । उत्तरयति - षड्जादयः सप्त स्वरा नामितो भवन्ति जायन्ते । गीतं च रुदितयोनिकम् - रुदितं योनिः समानरूपतया जाति र्यस्य तत्तथाविधं भवति, गीतं रोदनसमानं भवती स्यर्थः । उच्छ्वासाथ पदसमा भवन्ति । यावता समयेन वृत्तस्य पादः समाप्यते आकार होते हैं। (आइमिउ आरभंता, समुव्वहंता य मज्झगारंमि, अवसाणे तज्जर्वितो तिन्निय गीयम्स आगारा) सर्व प्रथम गीत मृदुध्वनिवाला होता है । मध्यभाग में वह तेजध्वनिवाला और अन्त में मन्द्रध्वनिवाला होता हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भावार्थ सूत्रकार ने इस सूत्र द्वारा " षड्ज आदि सात स्वर कहां से उत्पन्न होते हैं ? गीत की जातियां क्या है ? गीत के उच्छ्वासों के समय का प्रमाण कितने हैं, और गीत किस आकार का होता है ?-" इन चार प्रश्नों के उत्तर दिये हैं। इसमें उन्हों ने यह प्रकट किया है कि- ये पूर्वोक्त षड्ज आदि सात स्वर नाभिस्थान से उत्पन्न होते हैं । गीत रोने की जाति के जैसा होता है। यहां योनि शब्द का अर्थ जाति । छन्द का पाद जितने समय में समाप्त होता है उतना ही समय गीत के ग्राहंसभ उच्छ्वास होय छे. ( गीयरस तिणि आगारा) गीतना शुभांर होय छे. (आइमिउ आरभंता, समुव्वहंता य मझगारंमि अवस्राणे तज्जविंतो तिन्निय गीयरस आगारा) सर्व प्रथम गीत भृहुध्वनि युक्त होय छे. मध्यભાગમાં તે તીવ્રધ્વનિ યુક્ત હાય છે અને છેવટે મન્દ્રધ્વનિ યુક્ત હોય છે. भावार्थ-सूत्रअरे या सूत्र वडे " षड्ज " वगेरे सांत स्त्ररे। ज्यांथी ઉત્પન્ન થયા છે ? ગીતના ઉત્પત્તિ સ્થાનેા કયા છે ? ગીતના ઉચ્છ્વાસાનુ’ પ્રમાણુ उटलु છે ? અને ગીતના આકાર કંઈ જાતના છે? એ પ્રશ્નોના જવામા આપવામાં આવ્યા છે આમાં ચાર તેમણે ૫૪ સાત રા કર્યુ છે કે પૂર્વોક્ત ષડ્રેજ વગેરે નાભિસ્થાનમાંથી ઉત્પન્ન થયા છે ગીતની જ્ઞાતિ રુદન જેવી હાય છે, અહી ચેાનિ શબ્દને For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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