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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १६३ कारणतो स्वरनिरूपणम् मज्झिमं पुण झल्लरी ॥६॥ चउचरणपाहाणा, गोहिया पंचमं सरं। आडंबरो धेवइयं, महाभेरी य सत्तमं ॥७॥सू०१६३॥ ___ छाया-एतेषां खलु सप्तानां स्वराणां सप्त स्वरस्थानानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथाषड्ज च अग्रजिया, उरसा ऋपभं स्वरम् । कण्ठाग्रेण गान्धारं, मध्ये जिह्वया मध्य. मम् ॥२॥ नासिकया पश्चमं ब्रयात्, दन्तोष्ठेन च धैवतम् । मूनां च निषादम्, स्वरस्थानानि व्याख्यातानि ॥३॥ सप्तस्वराः जीवनिश्रिताः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-षड्जं इस प्रकार नाम से स्वरों का कथन करके अथ सूत्रकार उन्हीं स्वरों का कारण की अपेक्षा लेकर कथन करते हैं- . 'एएसिं णं सत्तण्हं' इत्यादि। शब्दार्थ-(एएसिणं ) इन (सत्तसराणं) सात स्वरों के (सप्त)सात (सरहाणा) स्वरस्थान (पणत्ता) कहे गये हैं। (तं जहा) वे इस प्रकार से हैं।-(सज्जं च अग्गजीहाए) जिह्वा के अग्र भाग से षड्ज स्वर बोलना चाहिये (उरेण रिसहं सरं) वक्षस्थल से ऋषभस्वर बोलना चाहिये (कंटुग्गएणं गंधारं) कण्ठ के अग्रभाग से गांधार स्वर पोलना चाहिये। (मज्झजीहाए मज्झिमं) जिहवा के मध्य भाग से मध्यम स्वर योलना चाहिये । (नासाए पंचम) नासिका से पंचम स्वर बोलना चाहिये (दंतोटेण य धेवयं ) दन्तोष्ठ से धैवत स्वर बोलना चाहिये ( मुद्धाणेणं य णेसायं बूया) और मूर्धा से निषाद स्वर बोल. આ પ્રમાણે સ્વરનું નામની અપેક્ષાએ કથન કરીને હવે સૂત્રકાર તેજ સ્વરેનું કારણની અપેક્ષાએ કથન કરે છે " एएसिणं सत्तण्हं" त्याह शाय-(एएसि णं) मा (सत्तसराणं) सात स्परेशना (सत्त) सात (सरद्वाणा) २१२स्थान। (पण्णत्ता) ४ाम मा०यां छे. (तंजहा) ते मा प्रमाणे छे (सज्जं च अग्गजीहाए) मन ममाया पड २१२ या२६५ ४२ मध्ये (उरेणं रिसहं सरं) १३०था ऋषम २१२ यार ४२ ४ो. (कंठुग्गएणं गंधारं) ४ना समाथी गांधार २१२नु च्या२१ ४२७ नमे (मज्झजीहाए मज्झिम) मना मध्यभागी मध्यम ५१२नु प्यार ४२७ स. नासाए पंचम) नथी पंयभर५२नु या२९५ ४२ मे. (दंतोटेण य घेवयं) इन्त।४थी धैवत २१२नु अया२३ ४२ नये (मुद्धाणे णं य णेसायं बूया) अरे भूर्भाधा निषा १२नु अया२५ ४२ मे. (सरदाणा वियाहिया) मा प्रमाणे सात १२ स्थानानु थन ४२वामा भा०य छे. अ० १०० For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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