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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Da c tetic... - - - अनुयोगद्वारसूत्रे (कयरे से णामे उवप्लमियन्वयखोवसमियनिप्फण्णे ? ) हे भदन्त ! औपशमिक क्षायिक और क्षायोपशमिक इन तीनों भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ सान्निपातिक भाव कैसा है ? उत्तर-(उपसमियखइयखोवसमियनिष्फण्णे) औपशमिक क्षायिक और क्षायोपशमिक इन तीन भावों से निष्पन्न हुआ-सान्निपातिकभाव इसप्रकार से है-(उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं खओव समियाई इंदियाई) उपशमित हुई कषायें औपशमिक भाव हैं, क्षायिक सम्यक्त्व क्षायिक भावरूप है और इन्द्रियांक्षायोपशमिक भाव है। (एसणं से णामे उपसमियखहयखओवसमियनिष्फण्णे) इस प्रकार यह औपशमिक क्षायिक क्षायोपशमिक इन तीन भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ सान्निपातिक भाव है, (कयरे से णामे उवसमिय खायपारिणामिय. णिफण्णे) हे भदन्त ! औपशमिक क्षायिक और पारिणामिक इन तीन भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ सान्निपातिक भाव कैसा है ? ___ उत्तर-(उपसमियखझ्यपारिणामियनिप्फण्णे) औपशमिक क्षायिक और पारिणामिक इन तीनों भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ सान्नि. पातिक भाव इसप्रकार से है । (उवसता कसाया, खड्यं सम्नत्त, पारि___ -(कयरे से णामे उवसमियखझ्यनओसमियनिष्फण्णे १) डे मापन् । ઔપશમિક, ક્ષાયિક અને ક્ષાપથમિક, આ ત્રણેના સાગથી બનતા સાતમાં સારિપાતિક ભાવનું સ્વરૂપ કેવું છે? .. उत्तर-(उवसमिय खइयखओवसमियनिष्फण्णे) भोपशभि, क्षायि भने ક્ષાપશમિક, આ ત્રણ ભાવના સાગથી બનતા સાતમાં સાન્નિપાતિક सापर्नु २१३५ मा ५४.२नु छ-(उपसंता कसाया, खइयं सम्मत्तं, खओवसमियाइं इंदियाई) 6५शभित थये। पाये। मी५शमि मा ३५ छ, क्षायिक સમ્યક્ત્વ ક્ષાયિક ભાવ રૂપ છે અને ઇન્દ્રિય ક્ષયપશમિક ભાવ રૂપ છે. (एसणं से णामे उव समियखइयख ओवसमियनिष्फण्णे?) मारने मो५०. મિક ક્ષયિક ક્ષાયોપથમિક નામને સાન્નિપાતિક ભાવ હોય છે. प्रश्न-(कयरे से णामे उवममिय खइयपारिणामियनिष्फण्णे) 3 भगवन् । પશમિક, ક્ષાયિક અને પરિણામિક, આ ત્રણ ભાના સંગથી બનતા આઠમાં સાન્નિપાતિક ભાવનું સ્વરૂપ કેવું છે? - उत्तर-(उवसमियखहयपारिणामियनिष्फण्णे) भोपशभिड, क्षायि: भने પરિણામિક, આ ત્રણ ભાના સંગથી બનત સાન્નિપાતિક ભાવ આ भरना 8-(उपसंता कसाया, खइयं सम्मतं, पारिणामिए जीवे) ७५शभित For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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