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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १५६ पारिणामिकभावनिरूपणम् ७४ कालः। गन्धर्व नगराणि-उत्तमोत्तम प्रासादोपशोभित नगराकृतितया परिणतास्त. थाविधनमःपुद्गलाः। उल्कापाता=आकाशप्रदेशतस्तेजः पुञ्जपतनानि। दिग्दाहाःअन्यतरस्यां दिशि नमःमदेशे ज्वालामालाकरालित ज्वलनावभासनानि। तथा-गर्जितं विद्युत् एतौ प्रसिदावेव। निर्घाता=विद्युत्पाताः। तथा-यूपका:-शुक्लपक्षीयदिनत्रयावस्थायिनः संध्याच्छेदावरणा बालचनेति प्रसिद्धाः ॥उक्तंचावश्यके ___ "संझाच्छेयावरणो य जूयो सुकदिण तिन्नि" ॥ छाया-संध्याच्छेदावरणश्च यूपका शुक्छे दिनानि त्रीणि-इति ॥ तथा-यक्षादीप्तानि-नभसि दृश्यमानाः पिशाचाकृतयोऽग्नयः धूमिका=नभसि रूक्षः प्रविरलो धूम इव दृश्यमानो 'धूमिका' इत्युच्यते। महिका-जलकणयुता तथा-(अन्भाय अन्भरुक्खा, संशा गंधव्वणगराय)अभ्र-मेघ अभ्रवृक्ष-वृक्षाकार में परिणमित हुए मेघ, संध्या-अहोरात्रका संधिकाल कि जिसमें आकाश कृष्ण, नीलादिरूप में परिणत हो जाता है। गंधर्वनगर-उत्तमोत्तम प्रासाद से शोभित नगर की आकृति जैसे बने हुए आकाश पुद्गल (उक्कावाया) उस्कोपात आकाश प्रदेश से गिरता हुआ तेजः पुंज (दिसा दाहा) दिग्दाह-किसी एक दिशाकी ओर आकाश में जलती हुई अग्नि का आभास-(दिखलाई देना) होना (गज्जिया) गर्जित मेघ की गर्जना, (विज्जू ) विजली (णिग्धाया) निर्यात-विजली कापात (जूवया) यूपक-शुक्लपक्षसंवन्धी तीन दिनका बालचन्द्र, (जक्खादित्ता) पक्षदीप्त-अकाश में दिखलाई देती हुई पिशाचाकृति जैसी अग्नि (धूमिया) धूमिका-आकाश में रूक्ष एवं विरल दिखलाई पड़ती हुई धूमकी तरह एक प्रकार की धूमस, (महिया) महिका-जलकण युक्त धूम जैसी भाप અવૃક્ષ (વૃક્ષાકારે પરિમિત થયેલા મેઘ) સંધ્યા (દિવસ અને રાત્રિને સંધિકાળ કે જેમાં આકાશ કૃષ્ણ, નીલાદિ રૂપે પરિણમિત થઈ જાય છે), ગંધર્વનગર (ઉત્તમોત્તમ પ્રાસાથી શોભતા નગરની આકૃતિ જેવાં બનેલાં माशY ), (उकावाया) Gerld (मा.श५मा स२४ते। तेश:), (दिसादाहा) हाल 58 हशमां शनी मह२ प्रति मनिना भामास वे!), (गज्जिया) मेघनी ना, (विजू) qिvil, (णिग्घाया), निर्यात (विoreी ५४ी), (जूवया) यू५४ (शुट पक्षनेत्र हसन मासयन्द्र), (जम्खादित्ता) यक्षाहीत (शमा माती पति की मन), (धूमिया) भूमिका (५मस) (महिया) मा (arBY युत धुमा २ घर धुमस) For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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