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अनुयोगद्वारसूत्रे मूलम--तम्हा आवस्सयं निक्खिविस्सामि, सुयं निविखविस्सामि खधं निक्खिविस्सामि, अज्झयणाई निक्खिविस्सामि ॥ सू० ७॥
छाया-तस्मात् आवश्यकं निक्षेप्स्यामि, श्रुतं निक्षेप्स्यामि स्कंध निक्षेप्स्याम, अध्धयनानि निक्षेप्पयामि ॥ सू० ७ ॥
टीका-'तम्हा' इत्यादि
इह हि आवश्यक सूत्रस्यानुयोगः तच्चाऽऽवश्यकं श्रुतरूपं किंधरूपम्, अध्ययनरूपं च । 'तम्हा' तस्मान् आवश्यकं निक्षेप्स्वामि-आवश्यकम्य निक्षेप करिष्यामि, श्रुतं निक्षेप्स्यामि-श्रुतस्य निक्षेपं करिष्यामि, स्कन्धं निक्षेप्पयामि स्कन्धस्य निक्षेपं करिष्यामि, अध्ययनानि निक्षेप्स्यामि अध्यनानां निक्षेप करिनिर्णीत हो जाता है इससे प्रकृत में क्या बात आती है ? इस शंका के "समाधान निमित्त" सूत्रकार कहते है
"तम्हा आवस्सयं" इत्यादि । ॥ ७॥
शब्दार्थ-यहां आवश्यक सूत्र का अनुयोग प्रस्तुत है और वह आव श्यक श्रुतरूप, स्कंधरूप एवं अध्ययनरूप है। (तम्हा) इसलिये (आवस्सयं) आवश्यक का मैं (निक्खिविस्सामि) निक्षेप करूंगा। (सुयं निखिकविरसामि) श्रुत को निक्षेप करूंगा (अझयणाई निक्विविस्सामि) अध्ययनों का निक्षेप करूंगा। इसका तत्पर्य यह है-कि जब यह शास्त्र आवश्यक आदिरूप से निर्णीत हो चुका है । तब इन आवश्यक आदि शब्दों का अर्थ खुलासारूप से स्पष्ट करने के योग्य हो जाता है। इसके अर्थ का स्पष्टरूप से विवेचन तभी हो सकता है कि जब पदों का निक्षेप किया जावे। विना निक्षेप किये इन અધ્યયનવાળું છે. હવે આ સત્રમાં કયા કયા વિષયને સમાવેશ થાય છે, તે પ્રકટ ४२वा निमित्त सूत्रा२ ४३ छ :-"तम्हा आवम्सयं" त्याह
શબ્દાર્થ—અહીં આવશ્યક સૂત્રને અનુગ પ્રસ્તુત છે, અને તે આવશ્યક श्रुत३५, २४५३५ अने, अध्ययन३५ छ. ती तेथी (आबस्सयं निक्खिविरसामि) सापश्यना नि५ ४ीश, (सुयं निक्खिविस्सामि) इतना नि५ ४२शश, (अज्झयणा निक्विविरसामि) भने अध्ययनाना हु निक्षेप ४रीश.
આ કમનને ભાવાર્થ નીચે પ્રમાણે છે-જયારે આ શાસ્ત્ર આવશ્યક આદિરૂપે નિત થઈ ગયું છે, ત્યારે આ આવશ્યક આદિ શબ્દોના અર્થ ખુલાસા સહિત
સ્પષ્ટ કરવાનું જરૂરી બની જાય છે. તેના અર્થનું સ્પષ્ટરૂપે વિવેચન કરવાનું કાય ત્યારે જ સરળ બની શકે કે જ્યારે પદેને નિક્ષેપ કરવામાં આવે. નિક્ષેપ
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