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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १५४ क्षायिकभावनिरूपणम् ७१ यस्य स तथा, एवं-क्षीणश्रुतावधिमनःपर्यवकेवलज्ञानावरणरूपाणि चत्वारि पदानि बोध्यानि । तथा-अनावरण:-अविधमानमावरणं यस्य त तथा, विमलप्रकाशवस्वात् निमलाकाशस्थितचन्द्रवत् । निरावरणः-निर्गतम् आवरणं यस्य स तथा समस्तावरण ज्ञानावरण कर्म पांच प्रकार का है १ मति ज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपर्यवज्ञानावरण और केवलज्ञानावरण जीव जब अहत जिन केवली बनता है, तब उसका सम्पूर्ण ज्ञानावरणकर्म नष्ट हो जाता है-इसलिये (खीण आभिणियोहियणाणावरणे) क्षीण हो गया है आभिनिबोधिक ज्ञानावरण जिसका (खीणसुयणाणावरणे) क्षीण हो गया है श्रुतज्ञानाधरण कम जिसका (खीणओहियणाणावरणे) क्षीण हो गया है अवधि ज्ञानावरण कर्म जिसका (खीण मणपजवणाणावरणे) क्षीण हो गया है मनःपर्यवज्ञानावरण जिसका, (खीणकेवलणाणावरणे) क्षीण हो गया है केवलज्ञानावरण जिसका, ऐसा होने के कारण क्षीणाभिनिषोधिक ज्ञानावरण, क्षीण तज्ञानावरण, क्षीणावधिज्ञानावरण, क्षीण मनःपर्यव. ज्ञानावरण, क्षीण केवलज्ञानावरण ये भिन्न २ नाम समस्त ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय हो जाने की अपेक्षा से निष्पन्न हो जाते हैं। इसी प्रकार से (अणावरणे निरावरणे, खीणावरणे, णाणावरणिनकम्मविप्पमुके) जय समस्त आवरण कर्म नष्ट हो जाता है तब वह आत्मा - જ્ઞાનાવરણ કર્મ પાંચ પ્રકારનાં છે (१) भतिज्ञानावर, (२) श्रुतज्ञाना१२६, (3) सपधिज्ञाना, (४) भना५वज्ञाना१२ भने (५) विज्ञानावर, જીવ જ્યારે અહત જિન કેવલી બને છે, ત્યારે તેના સમસ્ત જ્ઞાનાવ२५ नो नाश 48 Mय छ, तेथी ते (खीणं आभिणिबोहिय णाणापरणे) क्षी मानिनिमाधि ज्ञानावरपागा, (खीण सुयणाणावरणे) क्षी अवज्ञाना१२ भामा, (खीण ओहियणःणावरणे) aley अधिशाना१२५ ४म पाणा, (खीण मणपज्जवणाणावरणे) क्षी मनापयशाना१२५ ४भवाणी भने (खीण केवलणाणावरणे) क्षीवनावर पाणी 25 तय छ त १२०) समस्त જ્ઞાનાવરણીય કર્મોને ક્ષય થઈ જવાને કારણે તેના આ પાંચ નામે નિષ્પન્ન थाय छे. (१) क्षीनिनिमाधिज्ञानावर, (२) क्षीणतज्ञानावर, (3) ક્ષણાવધિજ્ઞાનાવરણ, (૪) ક્ષીણ મન ૫ર્યવજ્ઞાનાવરણ અને (૫) ક્ષીણ કેવલજ્ઞા ना१२५ मे प्रमाणे (अणावरणे, निरावरणे, खीणावरणे, णाणावरणिज्जकम्मविप्पमुक्के) यारे समस्त भाव२६ मन नाश 25 जय छे त्यारे ते मात्मा For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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