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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १५४ क्षायिकभावनिरूपणम् टीका -' से किं तं ' इत्यादि or hisar क्षायिकः ? इति शिष्य मश्नः । उत्तरयति - क्षायिकः क्षय एव, क्षग्रेज निष्पन्नो वा क्षायिकः । स द्विविधः प्रज्ञप्तः । द्वैविध्यमेवाह - तद्यथा- क्षायिक क्षयनिष्पन्नव । तत्र - क्षायिकः खलु अष्टानां कर्मप्रकृतीनां ज्ञानावरणीयाद्यष्ट विधा कर्मप्रकृतीनां क्षयः । क्षयनिष्पन्नस्तु अनेकविधः प्रज्ञप्तः । अनेकविधत्वमाह अब सूत्रकार क्षायिक भाव का निरूपण करते हैं“से किं तं खइए " इत्यादि शब्दार्थ - (से किं तं खइए ?) हे भदन्त ! वह क्षायिक क्या है ? उत्तर- (खइए दुविहे पण्णत्ते) क्षायिक दो प्रकार का कहा गया है।(तंजा) (जैसे - खइए य खयनिष्फण्णे य) एक क्षय रूप क्षायिक और दूसरा क्षय निष्पन्न। (से किं तं खइए) हे भदन्त ! वह क्षायिक क्या है ( अट्टहं कम्मपयडीणं खएणं) आठ कर्म प्रकृतियों का जो क्षय है वही क्षायिक है । (सेतं खइए) इस प्रकार वह यह क्षायिक है (से किं तं खयमि फण्णे) हे भदन्त ! वह क्षयनिष्पन्न क्षायिक क्या है ? (खयनिष्कपणे अवि पण्णत्ते). उत्तर- क्षय निष्पन्न क्षायिक भाव अनेक प्रकार का है। (तंजा) जैसे- (उप्पण्णणाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली) उत्पन्न ज्ञान दर्शन को હવે સૂત્રકાર ક્ષાયિક ભાવનું નિરૂપણ કરે છે " से किं तं' खइए " इत्याहि शब्दार्थ - (से कि त સ્વરૂપ કેવું છે ? Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खइए ?) हे भगवन् ! पूर्व प्रान्त क्षायिक लावूनु उत्तर- (खइए दुबिहे पण ते क्षार्थि भाव से प्रहारनो ह्यो छे. (तजा) ते मे अमरे। नीचे प्रमा छे - ( खइर य खयनिष्फण्णे य) (१) क्षय ३५ क्षायिक मने (२) क्षयनिष्यत्न. प्रश्न - (से कि त खइए ? ) है लगइन् ! ते क्षायिक लावनु स्व३५ ठेवु ? उत्तर-(अट्ठण्हं कम्मपयडीणं खरणं) मा उर्भ प्रमृतियांना क्षयनु' नाम क्षाथि छे. (सेत खइए) क्षायिउनु मा प्रहार स्व३५ छे. प्रश्न - (से कि तं खयनित्कण्णे ?) हे भगवन् ! क्षायिङ लावना जील से રૂપ ક્ષયનિષ્પન્ન ક્ષાયિક ભાવનુ સ્વરૂપ કેવું છે ? उत्तर-(खयनिष्फण्णे अणेगविहे पण्णत्ते) क्षयनिष्पन्न क्षायिभाव भने अम २. छे. (तंजाम है... ( उपण्णणाणदंसणबरे अरहा जिणे केवली) उत्पन्न જ્ઞાનદ નષારી અંત જિન કૈવલી ક્ષયનિષ્પન્ન ક્ષાયિક ભાવ રૂપ છે. For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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