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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगवन्द्रिका टीका सूत्र १४५ द्विनामादिस्वरूपनिरूपणम् ६३३ मूलम्-से किं तं दुनामे ? दुनामे दुविहे पण्णत्ते, तं जहाएगवखरिए य अणेगक्खरिए य । से किं तं एगक्खारिए ? एगक्खारिए अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा-ही, सी, धी, थी, । से तं एगवखरिए। से किं तं अणेगक्खरिए ? अणेगक्खरिए अणेगा बिहे पण्णत्ते, तं जहा-कन्ना वीणा लया माला । से तं अणेगक्खरिए। अहवा-दुनामे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-जीवनामे य अजीवनामे च । से किं तं जीवनामे ? जीवनामे अणेगविहे पण्णते, तं जहा-देवदत्तो जण्णदत्तो विण्हुदत्तो सोमदत्तो । से तं जीवनामे। से किं तं अजीवनामे ? अजीवनामे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा घडो पडो कडो रहो। से तं अजीवनामे। अहवा दुनामे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा विसेसिए य अविसेसिए य। अविससिए दवे, विसेसिए जीवदव्वे अजीवदव्वे य। अविसेसिए जीवदव्वे, विससिए णेरइए तिरिक्खजोणिए मणुकसौटी से प्रसिद्ध की गई है। यहां पर आगम को जो कसौटी की उपमा दी गई है उसका कारण यह है कि जिस प्रकार हेम रजत आदि के वास्त. विक स्वरूप का परिज्ञान निकषपट से होता है उसी प्रकार हेम रजत के सहश जो जीवादि पदार्थ हैं उन के स्वरूप का परिज्ञान शास्त्र-आगम -से ही होता है। अत: उनके स्वरूप के परिज्ञान का हेतु होने से आगम को यहां सूत्रकार ने निकष की उपमा से उपमित किया है।०१४४। વ્યક્ત કરવામાં આવી છે. અહીં આગમને કસે ટી ઉપમા દેવાનું કારણ એ છે કે જેવી રીતે સેનું, ચાંદી આદિના વાસ્તવિક સ્વરૂપનું પરિજ્ઞાન નિકષપટ્ટ (કોટી કરવાને પથ્થર) વડે થાય છે, એ જ પ્રાણે સોનાચાંદી જેવાં જીવાદિ પદાર્થો છે તેમના વાસ્તવિક સ્વરૂપનું પરિજ્ઞાન આગમ (શાસ્ત્ર) વડે જ થાય છે. તેથી તેમના સ્વરૂપના પરિજ્ઞાનના હેતુભૂત હોવાને કારણે સૂત્રકારે આગમને અહીં નિકલ (કસોટી પથ્થર)ની ઉપમા આપી છે સૂ૦૧૪ अ० ८० For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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