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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६०० अनुयोगद्वारसूत्रे स्थितिकः- एकः समयः स्थितिर्यस्य द्रव्यविशेषस्य स तथाभूतो द्रव्यविशेषो बोध्यः । एवमेव द्विसमयस्थितिकविसमयस्थितिको यावदशसमयस्थितिकः संख्ये यसमयस्थितिकोऽसंख्येय समयस्थितिकश्च द्रव्यविशेषः पूर्वानुपूर्वी बोध्या । पश्चानुपूर्वीतुअसंख्येयसमय स्थितिको यावदेक समयस्थितिकश्च । अनानुपूर्वी तु एकसमयस्थितिकाधारभ्य असंख्येयसमयस्थितिकानामन्योन्याभ्यासेऽसंख्येया भङ्गा भवन्ति तेषु आद्यन्तरूपभङ्गकद्वयविवक्षामपहाय सर्वभङ्गगुणनामिका बोध्या । इयमोपनिधिकी कालानुपूर्वी बोध्या । एतदेवाह' से तं ओवणिहिया' इत्यादि । सैपा औपनिधि ' ( से किं तं पुत्राणुपुत्री) हे भदन्त ! पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? उत्तर- ( पुत्राणुपुत्री) पूर्वानुपूर्वी का स्वरूप इस प्रकार से है(एमडिए, दुसमयहिए, निसमयहिए जाब दस समय संविज्जसमग्रहिए असंखिज्जलमयहिए ) एक समय की स्थितिवाला, दो समय की स्थितिवाला, तीन समय की स्थितिवाला यावत् दश समय की स्थितिवाला संख्यातसमय की स्थितिवाला असंख्यात समय की स्थितिबाला जितना भी द्रव्य विशेष है वह सब पूर्वानुपू है। (से किं तं पच्छाणुपुच्ची) हे भदन्त ! पश्चानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? (असंखिउसमयहिए जब एगसमर्या इए पच्छाणुपुथ्वी) असंख्यातसमय की स्थितिवाले द्रव्य से लेकर एकसमय तक की स्थितिवाला जो द्रव्य विशेष है वह पश्चानुपूर्वी है। ( से तं पच्छा पुच्ची ) यह पश्चानुपूर्वी का स्वरूप है। (से किं तं अणाणुपुथ्वी ?) हे भदन्त अनानुपूर्वी का प्रश्न- (से किं तं पुत्राणुपुत्री) हे भगवन् ! पूर्वानुपूर्वीनु स्व३५ ठेवु छे ? उत्तर- (पुव्वाणुपुत्री) पूर्वानुपूर्वी स्व३५ मा अनु छे - ( एगसमयट्टिइए, दुसम्यट्टिइए, तिसमयद्विश्य जाय दससमय ट्ठइए, संखिज्ज समय इिए, असंखिज्ज समर्याट्ठइए) मे समयनी स्थितिवाजां में समयनी स्थितिवाजा, ત્રણથી લઈને દસ પન્તની સ્થિતિવાળાં, સ`ખ્યાત સમયની સ્થિતિવાળાં અને અસંખ્યાત સમયની સ્થિતિવાળાં જેટલાં દ્રવ્યવિશેષા તેએ પૂર્વાનુપૂર્વી રૂપ છે, - ( मे किं तं पच्छाणुपुवी १) हे भगवन् ! पश्च नुपूर्वी नुं स्व३५ हेवु छे? उत्तर- (असंखिज्जस मयट्ठइए जान एगसमयट्ठइए पच्छाणुपुव्वी) असभ्यात સમયની સ્થિતિવાળથી લઈને એક સમય પન્તની સ્થિતિવાળાં જે દ્રવ્યવિशेष। छे, ते पश्चानुपूर्वी ३५ छे ( से तं पच्छाणुपुव्वी) या प्रभारनं पश्चानुपूर्वी नुं स्व३५ छे. प्रश्न-1 प्रश्र - ( से हि तं अणाणुपुथ्वी ?) हे भगवन् ! अनानुपूर्वी स्व३प ठेवु छे હૈ For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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