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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org अनुयोगवन्द्रिका टीका सूत्र १३७ औपनिधिकीकालानुपूर्वीनिरूपणम् ५९५ वर्षात्मकम्, पूर्वम् चतुरशीत्या लॉर्गुणिते चतुरशीतिकक्षात्म केऽङ्के यावती संख्या लभ्यते तत्पमाणम् , सा संख्याच-सप्ततिकोटिलक्षाणि षट्पञ्चाशचकोटिसहस्राणि (७०५६००००००००००) वर्षाणाम् । उक्तंच " पुनस्स उ परिमाणं, सयरी खलु हुँति कोडिलक्खाउ । छप्पण्णं च सहस्सा, बोद्धमा वासकोडीणं ॥" छाया-पूर्वस्य तु परिणाम सातिः खलु भवन्ति कोटिलक्षाः। षट्पञ्चाशच्च सहस्राणि बोद्धव्या वर्षकोटीनाम् ॥इति॥ इदमपि चतुरशीत्यालझर्गुणितं त्रुटिताङ्ग भवति । त्रुटिताङ्ग हि चतुरशीत्याल:गुणितं सदेकं त्रुटितं भवति । त्रुटितं च चतुरशीत्यालक्षैर्गुणितं सदेकम् अटटाई भवति । चतुरशीत्यालगुणितं च अटटाङ्गमेकमटं भवति। एवमेव इतः प्रभृति चौरासी लाखपूर्वाङ्ग का पूर्व होता है। इसमें वर्षों की संख्या ७०५६०००, ०००,०००० इतनी आती है । यही बात “पुवस्स उ परिमाणं" इत्यादि गाथा द्वारा प्रकट की है । इन वर्षों में ८४ लाख का गुणा करने पर जो संख्या आती है वह त्रुटिताङ्ग का परिमाण है । त्रुटिनांग परिमाण में चौरासीलाख का गुणा करने पर एक त्रुटित होता है । एक त्रुटित को ८४ लाख से गुणा करने पर १ अटटाङ्ग होता है। एक अटटाङ्ग को चौरासी लाख से गुणा करने पर एक अटट होता है। १ अटट प्रमाण में चौरासी लाख से गुणा करने पर १ एक अववाङ्ग होता है। १ अववाङ्ग में ८४ लाख का गुणा करने पर एक अश्व होता है। इसी प्रकार आगेर शीर्षप्रहेलिका तक के प्रमाणों में ऐसे ही करते चले जाना चाहिये । अर्थात् १ अवव में चौरासी लाख से गुणा करने पर १ हुहुकाङ्ग, १हु. हुकान में चौरासी लाख से गुणा करने पर१ हुहुक, १ हुहुक में चौरासी પૂર્વીગ થાય છે, અને ૮૪ લાખ પૂર્વાનું એક પૂર્ણ થાય છે. એક પૂર્વના ७०५९०००००००००० वर्ष थाय छे. मे पात सूत्रमारे " पुवस्स उ परिमाणं" छत्यादि सूत्रमा बा२। घट ४॥ छे. ८४ साथ पूरीन 28 ત્રુટિતાંગ થાય છે એટલે કે ૭૦૫૬૦૦૦૦૦૦૦૦૦૦ વર્ષને ૮૪ લાખ વડે ગુણવાથી જેટલાં વર્ષ આવે છે, તેટલાં વર્ષ પ્રમાણુ કાળને એક ત્રુટિતાંગ કહે છે ૮૪ લાખ ત્રુટિતાંગનું એક ત્રુટિત થાય છે. ૮૪ લાખ ત્રુટિતેનું એક અટટાંગ થાય છે. ૮૪ લાખ અટટનું એક અવવાંગ થાય છે. ૮૪ લાખ અવવાનું એક અવવ થાય છે. એક અવવના ૮૪ લાખ ગણ કરવાથી એક હુકાંગ પ્રમાણ કાળ બને છે. ૮૪ લાખ હેકગનું એક હુક બને છે For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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