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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४ अनुयोगद्वारसून पनिधिकी कालानुपूर्वी पञ्चविधा प्रज्ञप्ता, तपथा-अर्थपदमरूपणता, भासमुत्कोतनता, मङ्गोपदशेनता, समवतार: अनुगमः ॥९०१२५॥ टीका-से कि तं' इत्यादि । व्याख्यास्य पूर्ववद् बोध्या । मू० १३५॥ * अर्थपदमरूपणताहीनां निरूपणायाह___ मूलम्-से किं तं संगहस्स अस्थपयपवणया ? एयाई पंच वि दाराइं जहा खेत्ताणुपुठवीए संगहस्त तहा कालाणुपुबीए वि भाणियवाणि, णवरं टिई अभिलावो, जाव से तं अणुगमे से तं संगहस्स अणोवणिहिया कालाणुपची ॥सू०१३६॥ छाया-अथ का सा संग्रहस्य अर्थपदमरूपणता ? एतानि पश्चापि द्वाराणि यथा क्षेत्रानुपूया संग्रहस्य तथा कालानुपूर्व्यामपि भणि व्यानि, नवरं स्थित्यमिः लापर, यावत् स एषोऽनुगमः। सैषा संग्रहस्य अनोपनिधिकी कालानुपूर्वी ॥५.१३६॥ टीका-"से कि तं" इत्यादि । अथ का सा संग्रहसम्मताऽर्थपदमरूपणता ? इति प्रश्नः। उत्तरयति-एतानि= अर्थप्ररूपणतादीनि पश्चापि द्वाराणि संग्रहमते क्षेत्रानुपूामेकोत्तरशततमे सूत्रे कही गई है (तं जहा) जैसे-'अट्ठस्यपरूवणया भंगसमुक्त्तिणया, भंगोवदसणया 'समोयारे' अणुगमे) अर्थपदप्ररूपणता, भंगसमुत्कीर्तनता, भंगोपदर्शनता समवतार और अनुगम इस सूत्र की व्याख्या पहिले की गई व्याख्या के अनुसार ही जाननी चाहिये॥०१३५॥ "से किं तं संगहस्स" इत्यादि। शब्दार्थ-- (से किं तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया ) हे भदंत ! सं. महनयमान्य अर्थपद प्ररूपणता क्या है ? (एयाइं पंच वि दाराइं जहा खेत्ताणुपुवीए संगहस्स तहो कालाणुकुठवीए वि भाणियव्याणि) समत भनीपनिधिही मानुषी पांय ५४२नी ही छ. "तं जहा" a पांय । नीय प्रमाणे छ-(अदुपयपहवणया भंगसमुक्कित्तगया, भंगोवदंतणया, समोयारे, अणुगमे) (१) म ५४ प्र३५श्यता, (२) समुहीत नता, (3) Atપદર્શનતા, (૪) સમાવતાર અને (૫) અનુગમ આ સૂત્રની વ્યાખ્યા પહેલાં કહ્યા પ્રમાણે સમજવી પડ૧૩૫ ___“से किं तं संगहस्स" त्याह सहाय-(से किं तं संगहस्स अदुपयपरूवणया ?) ३ सन् ! ' હનયસંમત અર્થપદ પ્રરૂપણુતાનું સ્વરૂપે કેવું છે? उत्तर-(एयाइं पंच वि दाराइं जहा खेत्ताणुपुव्वीर संगहस्स तहा कालाणुपु. बीए वि भाणियवाणि) सनयस मत क्षेत्रानुभूतीमा म पांच बारात For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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