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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . अनुयोगद्वारसूत्रे स्यैवाभावादिति । नानाद्रव्याणि प्रतीत्य तु आनुपूर्वीद्रव्याणां सर्वाद्धा-सर्वकाल स्थिति भवति । लोकस्य प्रत्येकास्मन् प्रदेशे तेषां सर्वदा सद्भावात् । तथा-नेगम व्यवहारसम्मतानि अनानुद्रिव्याणि काळतः किच्चिरं भवन्ति-तिष्ठन्ति ? इति प्रश्नः । उत्तरयति-एकं द्रव्यं प्रतीत्य अजघन्यानुत्कण एकं समयं तिष्ठन्ति । रहता ही नहीं है। (नागादब्वाइं पडुच्च सम्बद्धा) तथा नाना आनुपूर्वी द्रव्यों की अपेक्षा को आश्रित करके आनुपूर्वीद्रव्योंकी स्थिति सार्वः कालिक है। क्योंकि लोक के प्रत्येक प्रदेश में नाना आनुपूर्वी द्रव्योंका सद्भाव रहता है (णेगमववहाराणं ) नैगमव्यवहारनयसंमत (अणाणुः पुचीदव्वाई ) समस्त अनानुपूर्वीद्रव्य (कालओ) काल की अपेक्षा से (केवच्चिरं ) कितने समय तक रहते हैं। उत्तर-(एगं दवं पडुच्च ) एक अनानुपूर्वीद्रव्य की अपेक्षा करके-(अजहन्नमणुकोसेण) अनानुपूर्वीद्रव्य अजघन्य और अनुस्कर्ष से एक समय तक रहते हैं (नाणादव्वाई पडुच्च सव्वदा) और नानाद्रव्यों की अपेक्षा करके समस्त अनानुपूर्वी द्रव्य सर्वकाल रहते है। क्योंकि लोक के हरएक प्रदेश में इनका सद्भाव रहता है। (अवत्तव्यगद -व्वाणं पुच्छा)प्रवक्तव्यकद्रव्यों के विषय में भी इसी प्रकार से प्रश्न में कि नैगमव्यवहारनयसंमत अवक्तव्यक द्रव्य काल की अपेक्षा से कितने समय तक रहते है ? (नाणादव्वाइं पडुच्च सव्वद्धा) भने भानुभूती यानी अपेक्षा વિચાર કરવામાં આવે, તે આનુપૂવ ની સ્થિતિ સાર્વકાલિક છે, કારણ કે લેકના પ્રત્યેક પ્રદેશમાં વિવિધ આનુપૂવ દ્રવ્યને સદા સદ્દભાવ જ રહે છે. प्रश-(णेगमववहाराणं) नरामव्यवहार नयसमत (अणाणुपुठवीदव्वाई) सभरत मनानु द्रव्य (कालओ) मनी अपेक्षा (केवग्गिरं) । સમય સુધી રહે છે? ____ उत्तर-(एगं दव्वं पडुन्च) मे मनानुषी दयनी अपेक्षा पियार ४२वामां आवे. तो (अजाममणुकोसेणं) बनानु५वी द्र०य भ य भने मनु. जनी अपेक्षा समय सुधी २३ छ. (नाणा इव्वाइं पहुच्च सम्वद्धा) અને અનેક દ્રવ્યેની અપેક્ષાએ વિચાર કરવામાં આવે તે અનાનુપ દ્રવ્યોની સ્થિતિ સાર્વક લિક છે, કારણ કે લેકના દરેક પ્રદેશમાં તેમને સદભાવ રહે છે. ____ -(अवत्तगइव्वाणं पुन्छा) भवत०५४ याना विषयमा ५g वे। પ્રશ્ન પૂછવામાં આવ્યું છે કે નૈગમવહાર નયસંમત અક્તવ્યક દ્રવ્ય કાળની અપેક્ષાએ કેટલા સમય સુધી રહે છે? For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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