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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १२३ ऊर्ध्वलोकक्षेत्रानुपूर्वीनिरूपणम् ५३७. *या यावन्तो भङ्गका भवन्ति, ते आयन्त विवक्षारहिता भङ्गा बोध्याः सम्प्रतिऔपनिधिक क्षेत्रानुपूर्वी प्रकारत्रयेण प्रदर्शयितुमाह-'अहवा' इत्यादि । अथवाऔपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी पूर्वानुपूर्व्यादिभेदैस्त्रिविधा विज्ञेया । तत्र - पूर्वानुपूर्वी प्रित की जाती है उसमें सबसे प्रथम में १ संख्या रखी जाती है बाद में एक २ की उत्तरोत्तर वृद्धि होती चली जाती इस प्रकार की वृद्धि यहां १.५ संख्या तक होती है। फिर इनमें परस्पर में गुणा किया जाता है । जो गुणन फल आता है उसमें आदि अन्त के दो भंग कम कर दिये जाते हैं। क्योंकी आदिका भङ्ग आनुपूर्वी में आजाता है और अन्तका भङ्ग पञ्चानुपूर्वी में आजाता है। इसलिये अनानुपूर्वी में आदि अंत के दो भंग छोड़ने को कहा है। इस प्रकार ( से णं अणाणुपुब्बी ) यह ऊर्ध्वलोक संबन्धी अनानुपूर्वी बन जाती है। ( अहवा) अथवा - ओवणिहिया- खेत्ताणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता) औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी - तीन प्रकार की प्रज्ञप्त हुई है । (तं जहा) जैसा - (पुब्बाणुपुच्ची, पच्छाणुपु०वी, अणाणुपुवी) पूर्वानुपूर्वी पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी ( से किं तं goalgoat) पुर्वानुपूर्वी क्या है ? उत्तर- (पुव्वाणुपु०वी) पूर्वानुपूर्वी इस प्रकार से है - ( एपए सोगाडे दुष्परसोगाढे दसपरसोगाढे संखिज्जपए सोगाढे जाव असंखिज्जपएसो પહેલાં એક સખ્યા રાખવામાં આવે છે, ત્યારમાદ ઉત્તરાઉત્તર એક એકની વૃદ્ધિ થતી જાય છે. આ પ્રકારની વૃદ્ધિ અહી ૧૫ સખ્યા સુધી કરાય છે. ત્યાર બાદ તેમાં પરસ્પરના ગુણાકાર આવે છે. જે ગુણનફળ આવે તેમાંથી આદિના એક અને અન્તના એક એમ એ ભગ ખાદ કરવામાં આવે છે. કેમકે-આદિના ભંગ આનુપૂર્વી માં આવી જાય છે, અને મતના ભગ પધ્ધાનુપૂર્વીમાં આવી જાય છે. તેથી અનાનુપૂર્વી માં આદિ અને यतन। खेभ मे लगो छोडवानु धुं छे. (से णं अणाणुपुव्वी) या प्रहार उर्ध्वा समधी मनानुपूर्वी मनी लय छे. ( अहवा) अथवा - (ओवणि हिय.. goat तिविद्दापण्णत्ता) भोपनिधिठी क्षेत्रानुपूर्वी वायु प्रहारनी उडी. (तंजा) ते प्रभारी नीचे प्रभाले छे - (पुव्वाणुपुव्वी, पच्छाणुपुव्वी, अणाणुपुञ्ची) (1) पूर्वानुपूर्वी, (२) पश्चानुपूर्वी मने (3) मनानुपूर्वी. प्रश्न - ( से किं तं पुव्वाणुपुत्री) हे भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी नुं स्व३५ ठेवु छे? Gur-(goanggoat) yalgyálo 24 4812 9. (nageìnià, gcq एम्रो गाढे, दखपएस्रगाढे, संखिरजएएसोगादे जाव असंखिज्जपए योगाठे) म० ६५ For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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