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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १२२ तिर्यग्लोक क्षेत्रानुपूर्वीनिरूपणम् ५२७ चंदसूराय । देवे नागे जक्खे भूए य सयंभूरमणे य ॥ ३॥ से तं पुव्वाणुपुब्वी । से किं तं पच्छाणुपुवी ? पच्छाणुपुवी - सयंभूरमणेय जाव जंबुद्दीवे । से तं पच्छाणुपुव्वी । से किं तं अणाणुपुथ्वी ? अणाणुपुद्दी एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए असंखेज्जगच्छ्गयाए सेढीए अण्णमण्णभासो दुरुवूको । से तं अणाणुपुवी ॥सू० १२२ ॥ छाया - तिर्यग लोक क्षेत्रानुपूर्वी त्रिविधा प्रज्ञप्ता तद्यथा- पूर्वानुपूर्वी पथा नुपूर्वी, अनानुपूर्वी । अथ का सा पूर्वानुपूर्वी ? पूर्वानुपूर्वी जम्बूद्वीपो लवणो घातकी कालोदः पुष्करः वरुणः । क्षीरः घृतः क्षोदः नन्दी अरुणवरः कुण्डलः रुचकः । आभरणवस्त्रगन्धाः उत्पलतिलकं च पृथिवीनिधिरत्नम् । वर्षधरनद्यो विजया (6 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " तिरियलोयखेत्ताणुपुवी" इत्यादि शब्दार्थ - (सिरियलोयखेत्साणुपुब्बी तिविहा पण्णत्ता) तिर्यग्लोक क्षेत्रानुपूर्वी तीन प्रकार की कही गई है। (तं जहा) वे प्रकार ये हैं- (पुव्वाणुपुथ्वी, पच्छाणुपुथ्वी, अणाणुपुबी) पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी । (से किं तं पुचाणुपु०बी ? ) हे भदन्त । पूर्वानुपूर्वी क्या है ? (पुव्वाणु पुच्ची ) उत्तर-पूर्वानुपूर्वी इस प्रकार से है जंबुद्दीवे लवणे, घायई कालोय पुवखरे वरुणे । खीर- घय खोय नंदी- अरुणवरे कुंडले रुभगे ॥ १ ॥ "आभरणवत्थगंधे, उप्पलतिलए य पुढवि निहिरयणे । वासहरदहनईओ, विजया वक्खारकपिंदा ॥ २ ॥ जंबुद्वीप, लवणसमुद्र धातकी तिरियलोयखेत्ताणुपुव्वी ' " इत्यादि 2984'-( faftusadanggeat fafagı qonai) Hubâis Dagपूर्वी यु अमरनी डी छे. (तंजहा) ते अमारो नीचे प्रमाणे छे - (पुव्वाणुपुम्बी पछाणुपुब्बी, अणाणुपुब्वी) पूर्वानुपूर्वी पश्चानुपूर्वी मने नानुपूर्वी प्रश्न - ( से कि तं पुव्वाणुपुव्वी १) हे भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी नुं स्व३५ ठेवु छे? उत्तर- (पुव्वाणुपुत्री) तिर्यो समधी पूर्वानुपूर्वी या अझरनी छे(जंबुद्दीवे लवणे, धायई कालो य पुक्खरे वरुणे । खीर - घयखोय- नंदी - अरुणवरे कुंडले रुभगे || १ || आभरणवत्थ गंधे, उप्पलतिलए य पुढविनिहिरयणे । बाहर दहनईओ, विजयावक्खारकपिंदा ॥२॥ वयूद्वीप, बवायुसमुद्र, घातही थंड, समुद्र, पुष्ठरद्वीय, For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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