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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगवारसूबे असंख्येयप्रदेशावगाढ आनुपूर्वी, एकपदेशावगाढ अनानुपूर्वी, द्विपदेशावगाहर अबक्तव्यकम् । सैपा संग्रहस्य अर्थपदमरूपणता। एतस्याः खलु संग्रहस्य अर्थप्ररूपणतायाः किं प्रयोजनम् ? संग्रहस्य अर्थमरूपणतया संग्रहस्य भङ्गसमुत्कीर्तनता क्रियते । कोऽसौ संग्रहस्य भङ्गसमुत्कीर्तनता ? भङ्गसमुत्कीर्तनता अस्ति आनुपूर्वी, अस्ति अनानुपूर्वी, अस्ति अवक्तव्यकम् । अथवा अस्ति आनुपूर्वीच अनानुपूर्वी च। शावगाढ द्रव्य आनुपूर्वी हैं । (एगपएसोगाढे अणाणुपुग्धी) एक प्रदेशावगाढ द्रव्य अनानुपूर्वी है। (दुप्पएसोगाढे अवत्तव्यए) दो प्रदेशावगाद द्रव्य अवक्तव्यक है। (से तं संगहस्स अत्थपयपरूवणया) इस प्रकार यह संग्रहनय मान्य अर्थपदमरूपणता है। (एयाएणं संगहस्स अस्थपयपरूवणयाए किं पओयणं) इस संग्रहनयमान्य अर्थपदप्ररूपणता से क्या प्रयोजन सिद्ध होता है ? (संगहस्स अस्थपयपरूवणयाए संगहस्स भंगसमुकित्तणया कज्जई) उत्तर-इस संग्रहनयमान्य अर्थपदप्ररूपणता से संग्रहनयमान्य भंगसमुत्कीर्तनता की जाती है। यही इसका प्रयोजन है (से कि तं संगहस्स भंगसमुक्त्तिणया) हे भदन्त ! संग्रहनय मान्य यह भंगसमूहकीर्तनता क्या है ? (संगहस्तभंगसमुकित्तणया अस्थि आणुपुची अस्थि अणाणुपुब्बी अस्थि अवत्तवए) संग्रहनय मान्य भंगसमुत्कीर्तनता ऐसी है कि आनुपूर्वी है अनानुपूर्वी है अवक्तव्यक द्रव्य है। (अहवा अस्थि आणु मानुषी छ. (एगपएसोगाढे अणाणुपुव्वी) मे प्रदेशमा १३|| द्रव्य मना. नुनी ३५ छ, (दुप्पएसोगाढे अवत्तव्यए) २ प्रदेशमा अढ द्रव्य ५५. gics. (से तं संगहस्स अत्थपयपरूषणया) सहनयमान्य अ५४५३५४તાનું આ પ્રકારનું સ્વરૂપ છે. प्रश्न-(एयाएणं संगहस्स अस्थपयपहवणयाए कि पओयणं!) मा स नय. માન્ય અર્થ પદપ્રરૂપણુતા વડે કયા પ્રજનની સિદ્ધિ થાય છે? उत्तर-(संगहस्स अत्थपयपहवणयाए संगहस्स भंगसमुकित्तणया करजई) આ સંગ્રહનયસંમત અર્થપપ્રરૂપણુતા દ્વારા સંગ્રહનયમાન્ય ભંગસમુત્કીત્તનતા કરવામાં આવે છે. એટલું જ તેનું પ્રજન છે. -(से किं तं संगहस्स भंगसमुक्त्तिणया ) 3 .१न् ! स नयस મત તે ભંગસમુત્કીર્તનતાનું સ્વરૂપ કેવું છે? उत्तर-(संगहस्स भंगसमुचित्तणया अत्थि आणुपुत्री, अत्थि अणाणुपुत्री अत्यि अवत्तव्वए) स'नयस मत मसभु-डीत नतामा प्रश्नी -भानु५॥ 2, मनाषी थे भने १४०५४ २०य छे. (अहवा बत्थि आणुपुवी, For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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