SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 529
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ___ अनुयोगद्वारसूत्रे पुब्बी य अणाणुपुव्वी य, एवं जहा दवाणुपुवीए संगहस्स तहा खेत्ताणुपुटवीए वि भाणियब्वं जाव से तं संगहस्स भंगो. वदंसणया। से किं तं समोयारे ? समोयारे-संगहस्स आणु. पुचीदव्वाइं कहिं समोयरंति? किं आणुपुव्वीदव्वेहि समोयरंति ? अणाणुपुठवीदव्वेहिं ? अवत्तठवगदव्वेहि ? तिण्णिवि सटाणे समोयरंति। से तं समोयारे। से किं तं अणुगमे ? अणुगमे अट्ठविहे पण्णत्ते, तं जहा-संतपयपरूवणया जाव अप्पाबहुं नत्थि। संगहस्स आणुपुत्वीदवाइं किं अस्थि गस्थि ? णियमा अस्थि । एवं तिणि वि। सेसगदाराइं जहा दव्वाणुपुबीए संगहस्स तहा खेत्ताणुपुबीए वि भाणियवाई जाव से तं अणुगमे । से तं संगहस्त अणोवणिहिया खेत्ताणुपुवी। से तं अणोवणिहिया खेत्ताणुपुवी ॥सू०११९॥ छाश-अथ का सा संग्रहस्य औरनिधिको क्षेत्रानुपूर्वी १ संग्रहस्य अनौपनिधिको क्षेत्रानुपूर्वी पश्चविधा प्राप्ता, तद्यथा-अर्थ पदमरूपणता १, भंगसमुत्कीर्त इस प्रकार नैगमव्यवहारनयसंमत अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी का कथन करके अब सूत्रकार संग्रहनय मान्य अनोपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी का कथन करते हैं-से किं तं इत्यादि शब्दार्थ- ( से किं तं संगहस्स अणोवणिहिया खेसाणुपुव्वी ?) प्रश्न-हे भदन्त ! पूर्वप्रक्रान्त पहिले प्रारंभ की हुई उस संग्रहनय मान्य अनोपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? આ પ્રકારે નિગમવ્યવહાર નચમત અનૌપનિધિક ક્ષેત્રાનુપૂર્વ નિરૂ પણ કરીને હવે સૂત્રકાર સંગ્રહનયસંમત અનૌપનિધિ કી ક્ષેત્રાનુપૂર્વીનું नि३५५ रे छ-" से किं तं" याkि सहाय-(से कि तं संगहस्स अणोवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी) ३ पन्! પૂર્વ પ્રકાન્ત-પહેલાં જેને પ્રારંભ થઈ ચકર્યો છે એવી–સંગ્રહનયસંમત અને પનિધિ કી મેત્રાનુપવનું સ્વરૂપ કેવું છે? For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy