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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र ११२ क्षेत्रप्रमाणद्वारनिरूपणम्
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तथा - नैगमव्यवहारसम्मतानाम् अनानुपूर्वीद्रव्याणां पृच्छायां =पने तु एवं विज्ञेयम् - एकं द्रव्यं प्रतीत्य अनानुपूर्वीद्रव्यं नो संख्येयतमभागे भवति, नो संख्येयेषु भागेषु भवति, नो असंख्येयेषु भागेषु भवति, नापि च सर्वलोके भवति, किन्तु - असंख्येयतमभागे भवति । अयं भावः - एकं द्रव्यमाश्रित्यानानुपूर्वीद्रव्यं स्थित आनुपूर्वी द्रव्यों के भेद से विभिन्न प्रकार के आनुपूर्वी द्रव्यों से समस्त लोक व्याप्त हैं। ( णेगमबवहाराणं) नेगम व्यवहारनयसंमत (अणाणुपुथ्वीदन्वाइं ) अनानुपूर्वी द्रव्यों के ( पुच्छाए) प्रश्नों में तो इस प्रकार समझना चाहिये ( एगं दत्र ) एक द्रव्य की ( पडुच्च) प्रतीति करके अर्थात् एक अनानुपूर्वीद्रव्य की अपेक्षा करके (नो संखेज्जहभागे होज्जा) अनानुपूर्वी द्रव्य लोक के संख्यातवें भाग में अवगाही नहीं हैं (नो संखेज्जेसु भागे होज्जा. संख्यात भागों में अवगाही नहीं हैं (नोअसंखेज्जेसु भागेसु होज्जा) असंख्यात भागों में अवगाही नहीं हैं) (नो सव्वलोए होज्जा) और न सर्वलोक मे अवगाही हैं किन्तु (असंखेज्जइ भागे होज्जा) लोक के असंख्यातवें भाग में अवगाही हैं। अयं भावः- एक आनानुपूर्वी द्रव्य को लेकर जब यह विचार किया जाता है कि अनानुपूर्वीद्रव्य लोक के कौन से भाग में अवगाहित है? तब यह उत्तर मिलता है कि असंख्यातवें भाग में ही अवगाही है। क्योंकि अनानुपूर्वी द्रव्य
(રહેલુ) છે. એટલે કે લેાકના ત્રણ આદિ પ્રદેશમાં રહેલા આનુપૂર્વી દ્રવ્યેના लेहथी विभिन्न प्रहारना मानुपूर्वी द्रव्यो वडे समस्त सेोड व्यास छे. (णेगमववहाराणं' ) नैगभव्यवहार नयसभित ( अणाणुपुव्वी दव्वाण ) अनानुपूर्वी द्रव्योना (पुच्छाए) प्रश्नोभां (विषयभां) तो गया प्रमाणे समभवु लेोहयो(एग दव्त्र पडुच्च) ले सेठ मनानुपूर्वी द्रव्यनी अपेक्षाओ विचार अश्वाभां श्यावे, तो (नो संखिज्जइभागे होज्जा ) मनानुपूर्वी द्रव्य सोम्ना सध्यातभां भागमां भवगाडी नथी, (नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा ), बोडना सभ्यात भागोभां पशु अवगाडी नथी, (नो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा ) असभ्यात लागोभां पशु अवगाडी नथी, (नो सम्बलोए होज्जा ) भने समस्त बोम्मां पाशु अवगाडी नथी, परन्तु ( असंखेज्जइभागे होज्जा ) साउना असभ्यातभां ભાગમાં અવગાહી છે. આ સઘળા કથનના ભાવાય એ છે કે એક અનાનુપૂર્વી દ્રવ્યની ખાખતમાં એવા વિચાર કરવામાં આવે કે “એક અનાનુપૂર્વી દ્રવ્ય લેાકના કેટલા ભાગમાં અવગાહી છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તર એ છે કે તે લેાકના અસખ્યાતમાં ભાગમાં જ અવગાહી છે. કારણ કે અનાનુપૂર્વી દ્રવ્ય
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