SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 450
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न बनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र ९९ पुद्गलास्तिकायमधिकृत्य द्रव्यत्रयनिरूपणम् ४३३ पूर्वी-अनन्तप्रदेशिकः असंख्येयमदेशिक संख्येयप्रदेशिकों यावद् दशपदेशिको यावत् त्रिप्रदेशिको द्विपदेशिकः परमाणुपुद्गलः । सैषा पश्चानुपूर्वी । अथ का सा अनानुपूर्वी ? अनानुपूर्वी एतस्यामेव एकादिकायामेकोतरिकायामनन्तगच्छंगतार्या श्रेण्याम् अन्योऽन्याभ्यासो द्विरूपोनः । सैषाऽनानुपूर्वी । सैषा औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी । सैषा ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्ता द्रव्यानुपूर्वी । सैषा नोआगमतों म्यानुपूर्वी । सैषा द्रव्यानुपूर्वी ॥सू० ९९॥ टीका-'अहवा' इत्यादि अथवा-पुनः पुद्गलास्तिकायमाश्रित्य औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी पूर्वानुपूर्वी मयानुपूर्णनानुपूर्वी भेदेत्रिविधा प्रज्ञप्ता। तत्र-परमाणुपुद्गलो द्विप्रदेशिक इत्यादिक्रमेण-'अनन्तप्रदेशिकः' इति पर्यन्तं पूर्वानुपूर्वी। तथा-व्यु-क्रमेण 'अनन्तप्रदेशिकः' इत्यारभ्य 'परमाणुपुद्गलः' इति पर्यन्तं पश्चानुपूर्वी । अनानुकिाय संबंधी (से त पुव्वाणुपुत्री) पूर्वानुपूर्वी है । (से किं तं पच्छा. गुपुवी) हे भदन्त ! पश्चानुपूर्वी का क्या स्वरूप है? ___ उत्तर- (पच्छाणुपुष्वी )पश्चानुपूर्वी इस प्रकार से है-(अणंतपएसिए असखिज्जपएसिए, संखिज्जएएसिए जाव दसपएसिए जाव तिप्पएसिए दुप्पएसिए परमाणुगेग्गले ) जब पुद्गलास्तिकाय अनंत प्रदेशिक, असंख्यात प्रदेशिक, संख्यात प्रदेशिक, यावत् दशप्रदेशिक यावत् विनदेशिक विप्रदेशिक और परमाणुपुद्गल इस व्युत्क्रम से परिगणित हो तब (से तं पच्छाणुपुव्वी) वह पश्चानुपूर्वी है। (से किं तं अणाणुपुव्वी) हे भदन्त ! अनानुपूर्वी क्या है ? ___उत्तर-(अणाणुपुव्वी) अनानुपूर्वी इस प्रकार से हैं (एयाएचेव एगा. इयाए एगुत्तरियाए अणंतगच्छगयाए सेढीए-अण्णमण्णन्भासो दुरू प्रश्न-(से कि त पन्छाणुपुब्बी?) ३ सन् ! पश्चानुपूर्वानुं स्१३५ छ ? उत्तर-(पच्छाणुपुब्बी) ५श्चानुपूवीर्नु भा २नु २१३५ छे-(अणंतपएसिए, असंखिजपएसिए, संखिज्जपएसिए जाव दसपएसिए जाव तिप्पएसिए, दुप्पएसिए, परमाणुपोग्गले) ब्यारे रतय मानत प्रशिक्ष, सस ખ્યાત પ્રદેશિક, સંખ્યાતપ્રદેશિક, દસપ્રદેશિક, નવપ્રદેશિક આદિ ત્રણ પ્રદેશિક પર્યન્તના સ્કલ્પરૂપે અને દ્વિપ્રદેશિક સ્કંધ અને પરમાણુ પુદ્ગલ, આ પ્રકારે Seel भथी परिशयित थाय छे, त्यारे (से त पच्छाणुपुवी तर ५श्वानु. પૂર્વ કહેવાય છે. प्रश्न-(से कितअणाणुपुवी!) मग! मनानुषी नु२१३५३ हाय छ? उत्तर-(अणाणुपुव्वी) मनानुषी ने २१३५ मा प्रानुछे-(एयाए चेव म० ५५ For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy