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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र ९६ अनुगमस्वरूपनिरूपणम् अय क्षेत्रं निरूपयितुमाह-'संगहस्स आणुपुब्बोदवाइं लोगस्स कदमागे होज्जा?' इत्यादि-संग्रहनयसम्मतानि आनुपूर्वीद्रव्याणि लोकस्य कतिभागे-कियद्भागे भवन्ति ? कि संख्येयतमभागे भवन्ति ? किमसंख्येयतमभागे भवन्ति ? किं संख्ये. येषु भागेषु भवन्ति ? किमसंख्येयेषु भागेषु भवन्ति ? किं सर्वलोके भवन्ति ? इति प्रश्नः । उत्तरमाह-संग्रहनयसम्मतानि आनुपूर्वीद्रव्याणि लोकस्य संख्येयतमभागे नो भवन्ति, असंख्येयतमभागे नो भवन्ति, संख्येयेषु भागेषु नो भवन्ति, असंख्ये. येषु भागेषु चापि नो भवन्ति, किन्तु नियमात् सर्वकोके भवन्ति । आनुपूर्वी. सामान्यस्यैकत्वात् मई को कव्यापित्याच्च नियमात् सर्वलोके तत्सत्ता बोध्या। अब मूत्रकार क्षेत्र का निरूपण करते हैं प्रश्न- (संगहस्स आणुपुठवी दवाई लोगस्स कहभागे होज्जा?). संग्रहनय संमत समस्त आनुपूर्वीद्रव्य लोक के कितने भाग में हैं? (कि संखेज्जहभागे होज्जा, असंखेज्जहभागे होज्जा, संखेज्जेसु भा. गेसु होज्जा? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? सव्वलोए होज्जा ? )क्या लोक के संख्यातवें भाग में हैं ? या लोक के असंख्यातवें भाग में हैं? या लोक के संख्यात भागो में है ? या लोक के असंख्यात भागों में है या सर्वलोक में हैं ? उत्तर-(नो संखेज्जहभागे होज्जा, नो असंखेज्जाभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो असंखेजेसु भागेसु होज्जा, निय. मा सव्वलोए होज्जा, एवं दोनिवि ) समस्त आनुपूर्वी द्रव्य लोक के न संख्यातवें भाग में हैं न असंख्यातवें भाग में हैं, न संख्यात भागों में है और न असंख्यात भागों में हैं किन्तु नियम से समस्त लोक में है। प्रश्न-(संगहरस आणुपुबीदवाई लोगस्य कहभागे होगा ?) 391१। सनयमान्य मानुषी द्रव्ये ना ६ १ (किं संखेजइभागे होना, असंखेज्जइभागे होज्जा, संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, असं बेज्जेसु भागेसु होज्जा, सव्वलोए होज्जा ! Yasना सभ्यातमा भागमा ? કે અસંખ્યાતમાં ભાગમાં છે ? કે લેકના સંખ્યાતભાગોમાં છે? કે લેકના અસંખ્યાત ભાગમાં છે? કે સર્વલોકમાં છે? उत्तर-(नो संखेज्जइभागे होज्जा, नो भसंखेजहभागे होम्जा, नो संखेजेसु भागेसु होम्जा, नो असंखेग्जेसु भागेसु होज्जा, नियमा सव्वळोए होज्जा, एवं दोन्नि वि) समस्त मानुपा द्र०य asना ज्यातमभामा ५५ नयी, અખાતમાં ભાગમાં પણ નથી, સંખ્યાત ભાગોમાં પણ નથી, અસંખ્યાત ભાગોમાં પણ નથી, પરંતુ નિયમથી જ સમસ્ત લેકમાં છે, કારણ કે આન भ० ५३ For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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