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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ___ अनुयोगद्वारसूत्रे उभयार्थत्वमाश्रित्यावक्तव्यकद्रव्यापेक्षया विशेषाधिकानि बोध्यानि। अत्र हेतुमाह'दन्वट्टयाए अपएसट्टयाए' इति । द्रव्यार्थतयाऽप्रदेशार्थतया च अनानुपूर्वीद्रव्यागामवक्तव्यक् द्रव्यापेक्षया विशेषाधिक्यं बोध्यम्। 'अवत्तव्यगदम्बाई' इत्यादि, अवक्तव्याद्रव्याणां त्विह प्रत्येकं द्विपदेशत्वाद्विगुणितानां तेषामन्येभ्य: अनानु. पूर्वीद्रव्येभ्यः प्रदेशार्थतया विशेषाधिकरवं बोध्यम् । उभयार्थत्वमाश्रित्यानुपूर्वी द्रव्याणि असंख्येयगुणान्यनन्तगुणानि च सन्तीति सूचयितुमाह-'आणुपुब्बीदवाई' इत्यादि। आनुपूर्वीद्रव्याणि द्रव्यार्थतया असंख्येयगुणानि बोध्यानि, च-पुनः तान्येव-आनुपूर्वीद्रव्याण्येव प्रदेशार्यतया अनन्तगुणानि बोध्यानि। प्रत्येकचिन्तास्तोकता कही गई है । तथा “अणाणुपुब्धीदव्वाइं दवट्टयाए अपएसट्टयाए विसेसाहियाई ) अनानुपूर्ण द्रव्य उभयार्थत्व को ओश्रित करके अवक्तव्यक द्रव्य की अपेक्षा से कुछ अधिक हैं। यहां कुछ अधिकता द्रव्यार्थता और अप्रदेशार्थता से जाननी चाहिये। ( अवत्तव्वगव्वाई पएसट्टयाए विसेसाहियाई) तथा अवक्तव्यक द्रव्य प्रदेशार्थता की अपे. क्षा लेकर अनानुपूर्वी द्रव्यों से विशेषाधिक है । सो यह विशेषाधिकता इनमें प्रत्येक अवक्तव्यकद्रव्य द्विप्रदेशी होने के कारण जाननी चाहिये। क्यों कि ये प्रत्येक अनानुपूर्वी द्रव्यों के प्रदेशों की अपेक्षा द्विगुणित प्रदेशवाले हैं। तब कि अनानुपूर्वी द्रव्यों में प्रदेश एक एक है। इस प्रकार इनमें द्विगुणिता जानना चाहिये । (आणुपुब्बीदव्वाई व्यायाए असंखेज्जगुणाई ताई चेव पएसट्टयाए अणतगुणाई) उभयार्थता को आश्रित करके द्रव्यार्थना की अपेक्षा से आनुपूर्वी द्रव्य असंख्यात अपएसट्टयाए विसेसाहियाई) अनानुनी द्र०य मयावी अपेक्षा म५. તવ્યક દ્રવ્ય કરતાં વિશેષાધિક હોય છે અહીં દ્રવ્યાર્થતા અને અપ્રદેશાર્થ, तानी अपेक्षामे मधित समावी. (अवत्तव्वगवाई पएसद्वयाए विसेसाहियाई) तथा भवतव्य द्रव्यो प्रदेशातानी अपेक्षा मानानुवा' દ્રવ્ય કરતાં વિશેષાષિક છે. તેમની આ વિશેષાધિકતા પ્રત્યેક અવક્તવ્યક દ્રવ્ય ઢિપ્રદેશી હેવાને કારણે સમજવી, કારણ કે પ્રત્યેક અનાનુપૂર્વી દ્રવ્ય કરતાં પ્રત્યેક અવક્તવ્યક દ્રવ્ય બમણુ પ્રદેશવાળું હોય છે અનાનુપૂર્વી દ્રવ્ય એક એક પ્રદેશવાળું હોય છે અને અવક્તવ્યક દ્રવ્ય બબ્બે પ્રદેશવાળું હોય છે, તે કારણે અવક્તવ્યક દ્રવ્યને અનાનુપૂર્વી દ્રવ્ય કરતાં બમણ પ્રદેશવાળું કહ્યું છે. (आणुपुत्वीदव्वाइ दव्वद्वयाए असंखेज्जगुणाई ताई चेव पएसद्वयाए गणतगुणाई) यातनी अपेक्षा वे तमना १६५ (पने पियार For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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