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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ---- --- - - - - अनुयोगचन्द्रिका टोका सूत्र ८४ क्षेत्रनिरूपणम् नैगमव्यवहारसम्मतानि आनुपूर्वी द्रव्याणि किं लोकस्य एकस्मिन् संख्येय. तमे भागे भवन्ति-अवगाहन्ते ११ किंवा एकस्मिन् असंख्येयतमे भागेऽनगाइन्ते १२ अथवा-किं संख्येयभागेषु भवन्ति अवगाहन्ते ?३ किमसंख्येयभागेषु भान्तिअवगाहन्ते ? ४ अथवा-किं सर्वलोके मन्ति ? ५ इति पश्चप्रश्नाः। उत्तरमाहबानुपूर्वीद्रव्याणिज्यणुकस्कन्धादीनि अनन्ताणुकस्कन्धान्तानि, तत्र-एक द्रव्यं “मतीत्य-सामान्यत एक द्रव्यमाश्रित्य किमपि लोकस्य संख्येयतमभागे भवति, शद्वार्थ-(नेगमववहाराणं आणुपुब्धी दवाई) नैगम व्यवहार नय संमत अनेक आनुपूर्वी द्रव्य (लोगस्स ) लोक के (कि.) क्या ( संखि. जहभागे ) १ संख्यातवें भाग में ( होज्जा) अवगाहित हैं ? या (असंखिज्जइभागे होज्जा २) असंख्यातवें भाग में अवगाहिन है ? (संखे उजेसु भागेसु होज्जा ) या ३ संख्यात भागों में अवगाहित हैं। या ४ ( असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा ) असंख्यात भागों में अवगाहित हैं ? या ( सव्वलोए होज्जा?) ५ सम्पूर्ण लोकमें अवगाहित हैं ? ____ उत्तर-(एग दव्वं पडुच्च संखेज्जइभागे वा होज्जा, असंखेज्जा भागे वा होज्जा संखेज्जेसु भागेसु वा होना; असंखेज्जेसु भागेतु पा होज्जा सव्वलोए वा होजा) व्यणुःकादि अनन्ताणु स्कंधों में से सामान्य रूप से किसी एक द्रव्य की अपेक्षा करके कोई एक आनुपूर्भ लोक के संख्यातवे भाग में तथा कोई एक आनुपूर्वी द्रव्य लोक के 'असंख्यातवें भाग में रहता है तथा कोई एक आनुपूर्वी द्रव्य लोकके शहाय-( नेगमववहाराण आणुपुठवीदबाई) नेगम सने न्या . नयमत भन भानुपूका द्रव्य (लोगस्स किं संखिज्जइ भागे होउजा) ४ લોકના સંખ્યાતમાં ભાગમાં અવગાહિત છે ? કે લેકના અસંખ્યાતમાં ભાગમાં अहित छ, (असंखिज्जइ भागे होज्जा २) योन। मसभ्यातमा सामi मालित छ, 3 ( संखेजेसु भागेसु होज्जा ३) अध्यात मi Aquisa छ, है (सबलोए होज्जा १) संपूर्ण माहित डाय छे ? उत्तर-(एग दव्य पडुनच संखेज्जइ भागे वा होज्जा, असंखेजइ भागे पा होज्जा, संखे जेसु भागेसु वा होजा, असंखिज्जेसु भागेसु वा होज्जा, सव्वलोए वा होज्जा) ३५ ५२भाव।( निशी) थी मनत पयतन मायामा ધ (અનંત પ્રદેશ )માંથી સામાન્ય રૂપે કેઈ એક દ્રવ્યની અપે. કક્ષાએ કઈ એક આનુપૂર્વી દ્રવ્ય લેકના સંખ્યાતમાં ભાગમાં અવગાહિત થઈને રહે છે, કોઈ એક આનુપૂવી દ્રવ્ય લેકના અસંખ્યાતમાં ભાગમાં રહે For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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