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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - - अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र ७० नोआगमतो भावोपक्रममनिरूपणम् २७३ उपायः, स चेह-भगवदनुशासनज्ञानसाधनरूपो ग्राह्यः । उक्तं च-- "सोचा भगवाणुसासणं, सचे तत्थ करेज्जुवकम ॥” छाया-श्रुत्वा भगवदनुशासनं सत्यं तत्र कुर्यादुपक्रमम्-इति व्याख्या-सत्यं यथार्थ भगवता तीर्थ करेण प्रोक्तमनुशासनं श्रुत्वा तत्रअनुशासने उपक्रम-तत्प्राप्युपायं कुर्यात्-इत्यर्थः । इत्थं च भगवदुक्तानुशासनप्राप्त्युपायज्ञस्तत्रोपक्रमे उपयुक्तश्च आगमतो मावोपक्रम इति । नोआगमतो भावोपक्रमोऽपि द्विविधः प्रज्ञप्तः । तद् यथा प्रशस्तश्च, अपशस्तश्च । इह भावशब्द:-अभिप्रायाख्यो जीवद्रव्यपर्यायोऽभिमतः। उक्त' च-भावाभिख्याः पञ्च स्वभावसत्साऽऽत्मयोन्यभिमाया इति । ततश्च-भावस्य इसका भाव यह है कि उपक्रम और उपाय ये एकार्थक शब्द हैंभगवान् तीर्थंकर द्वारा कथित अनुशासन के ज्ञान का साधनरूप वह उपक्रम यहां ग्राह्य हुआ है। अन्यत्र ऐसा ही कहा है-(साच्चा) इत्यादि । कि भगवान् के द्वारा कथित अनुशासन बिलकुल सत्य है-उसे श्रवणकर श्रोता का कर्तव्य है कि वह उसकी प्राप्ति का उपाय करें। इस प्रकार भगवदुक्त अनुशासन की प्राप्ति का उपाय जानने वाला ज्ञाता उस उपक्रम में उपयुक्त होता हुआ आगम से भावोपक्रम है। (नोआगमओ भावावक्कमे दुविहे पण्णत्ते-त जहा) नो आगमको आश्रित करके भावोपक्रम दो प्रकारका कहा गया है। जैसे (पसत्थे य अपसत्थे य) एक प्रशस्त और दूसरा अप्रशस्त । यहां पर भाव शब्द का अर्थ अभिप्राय है और यह जीव द्रव्य का पर्यायरूप से माना गया है। कहा भी है (भावाभिख्याः ) भावके पांच नाम हैं स्वभाव १, सत्ता २, आत्मा३, योनि ४, और अभिप्राय ५ । इस तरह साधन३५ ते 8 मही ग्राह्य थयो छ. अन्यत्र १ मे १ ४ह्यु छ ? "सोचा" ઇત્યાદિ–તીર્થકર ભગવાન દ્વારા કથિત અનુશાસન સર્વથા સત્ય છે. તેને શ્રવણ કરનાર શ્રાવકનું તેની પ્રાપ્તિને ઉપાય કરવાનું કર્તવ્ય થઈ પડે છે. આ પ્રકારે ભગવદુત અનુશાસનની પ્રાપ્તિનો ઉપાય જાણનાર જ્ઞાતા તે ઉપક્રમમાં ઉપયુક્ત (ઉપયાગ પરિણામથી યુક્ત) હોવાને કારણે આગમની અપેક્ષાએ ભાપક્રમરૂપ હોય છે. . (नोआगमओ भावविक्कमे दुविहे पण्णत्ते) नामागम ५४म में प्रश्न sat छ. (तं जहा) मे रे नीचे प्रमाणे छ- (पसत्थे य अपसत्थेय) (१) પ્રશસ્ત અને (૨) અપ્રશસ્ત અહીં ભાઈ શબ્દને અર્થ અભિપ્રાય છે, અને તે જીવન द्रव्यना पर्याय३५ भानपामा माया छ. ह्यु ५५ छ "भावाभिख्या:" सावना पाय नाम नीय प्रभा छ-(१) २१, (२) सत्ता, (3) मामा, (४) योनि For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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